नई दिल्ली
क्षेत्रिय व्यापक आर्थिक भागीदारी के 16 देशों के बीच दुनिया का यह सबसे बड़ा व्यापारिक समझौता होगा। विश्व की करीब 45 फीसदी आबादी के साथ निर्यात का एक चौथाई इन्ही देशों से होता है। तमाम विरोधाभासों के बीच, समझौते के 25 बिंदुओं में से 21 पर सहमति की बात कही गई है।
आर्थिक सुस्ती की आहट, निर्यात में कमी, राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी जैसी चिंताओं के बीच क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) का मुद्दा मोदी सरकार के सामने बड़ी मुश्किल के तौर पर सामनेआया है। विपक्षी दल, किसान, उद्योग और यहां तक कि आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच सहित तमाम संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बैंकॉक में 16 एशियाई देशों की बैठक में भाग लेने के लिए पहुंच चुके हैं, जहां संभवत: चार नवंबर को आरसीईपी का एलान होना है। हालांकि बैठक का नतीजा कुछ भी हो, लेकिन सरकार के लिए घरेलू उद्योग जगत की मांगों और समझौते में फायदे देखने वालों के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं होगा।
गौरतलब है कि लगातार विरोध के बीच सरकार पहले ही जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लिए जाने की बात कह चुकी है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने हाल ही में कहा था भारत जल्दबाजी में कोई भी एफटीए नहीं करेगा और घरेलू उद्योग के हितों से समझौता किए बिना ही कोई गठजोड़ करेगा। आरसीईपी के संदर्भ में काफी सारी गलत सूचनाएं हैं। भारत अपनी शर्तों पर एफटीए या व्यापक भागीदारी समझौता करेगा।
वहीं आरसीईपी के विरोध में कांग्रेस देशभर में आंदोलन छेड़ने का एलान कर चुकी है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एके एंटनी ने कहा था, भारत एक गंभीर आर्थिक संकट और मंदी की ओर बढ़ रहा है। ऐसे माहौल में जिम्मेदार बनने के बजाय सरकार आरसीईपी समझौते पर चर्चा करने में वक्त बर्बाद कर रही है। पार्टी नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि आरसीईपी के मौजूदा मसौदे से राष्ट्रहित को हटा दिया गया है। उन्होंने आरसीईपी को नोटबंदी, जीएसटी के बाद अर्थव्यवस्था के लिए तीसरा संभावित झटका करार दिया।
उधर, आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच सहित कई संगठन डेयरी और कृषि क्षेत्र को इस समझौते से बाहर रखने की मांग कर रहे हैं। भारत पूर्व में हुए कई एफटीए से भी इन संवेदनशील क्षेत्रों को बाहर रखता आ रहा है। हालांकि आरसीईपी के सदस्य देशों ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की भारतीय बाजार पर नजर है। पूर्व में यूरोपीय यूनियन, कनाडा, अमेरिका के साथ एफटीए वाता नाकाम होने की वजह भी यही थी, क्योंकि वे डेयरी और कृषि क्षेत्र को इसमें शामिल करना चाहते थे।
कृषि क्षेत्र: आरसीईपी से आयात के वास्ते दूसरे देशों के लिए दरवाजे पूरी तरह खुल जाते हैं तो कृषि क्षेत्र के लिए संकट खासा बढ़ जाएगा। दुनिया की सबसे बड़ी भारतीय डेयरी अर्थव्यवस्था से 1.5 करोड़ किसान जुड़े हैं। लगभग सात लाख करोड़ रुपये का भारत का डेयरी क्षेत्र कुल कृषि आय (28 लाख करोड़) में 25 फीसदी योगदान करता है।
भारत की दुग्ध सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों का उत्पादन, प्रसंस्करण के साथ ही विपणन पर भी आंशिक नियंत्रण है। इसी कारण किसानों के आंदोलन को दुग्ध सहकारी संगठन अमूल ने समर्थन देने का एलान किया था।
हालांकि, अमूल के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी ने कहा कि सरकार ने उन्हें डेयरी किसानों के प्रतिकूल कोई समझौता नहीं किए जाने का भरोसा दिया है।
उद्योग क्षेत्र: घरेलू मांग में सुस्ती के कारण विनिर्माण क्षेत्र में लगातार सुस्ती बनी हुई है। अगर आरसीईपी समझौता हो जाता है तो कई क्षेत्रों के लिए अनिश्चिताएं बढ़ जाएंगी। इस क्रम में नौकरियों की छंटनी और आय में कमी देखने को मिलेगी, जिससे उबरना अर्थव्यवस्था के लिए आसान नहीं होगा।
माना जा रहा है कि इस समझौते के बाद भारत के लिए चीन और भी बड़े खतरे के तौर पर सामने आएगा। दरअसल, चीन के सस्ते सामान के आगे भारतीय बाजार कहीं नहीं टिकता है। भारत के लगातार प्रयासों के बावजूद चीन की तुलना में व्यापार घाटा लगभाग 53 अरब डॉलर हो चुका है, जसमें 2014 से अब तक लगभग 50 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है। वार्ताकार चाहते हैं कि भारत क्षेत्र में बिकने वाले 90 फीसदी उत्पादों पर टैरिफ खत्म कर दे। वहीं भारत की चिंता है कि उसके यहां बिकने वाले सामान में 40 फीसदी हिस्सेदारी चीनी कंपनियों की है। भारतीय निर्यातकों की चीन में पहुंच मुश्किल बनी हुई है, क्योंकि चीन के व्यापार नियामकों से मंजूरी लेना ही मुश्किल होता है।