भोपाल
झाबुआ उपचुनाव को देखते हुए प्रदेश की कमलनाथ सरकार का सीधा फोकस अब आदिवासियों पर आ टिका है। सरकार आए दिन आदिवासियों को साधने के लिए नई नई योजनाएं और फैसले ले रही है। खबर है कि अब सरकार आदिवासियों को वन अधिकार कानून लागू करने जा रही है।इसका लाभ प्रदेश की 21 फीसदी आदिवासी आबादी को मिलेगा। वही सरकार के इस कदम से बीजेपी में खलबली मच गई है, क्योंकि शिवराज सरकार के दौरान ही ये अधिकार रद्द कर दिए गए थे। इसी के साथ सरकार उपचुनाव से पहले अपना एक और वचन पूरा करने में जुट गई है।
दरअसल, सत्ता में आने से पहले कांग्रेस ने प्रदेश की जनता से कई वादे किए थे, उनमें एक वादा आदिवासियों को उनकी ज़मीन पर हक़ देने का भी था। इसको लेकर आदिवासी संगठन भी कई बार सरकार से गुहार लगा चुके है।इसी के चलते सरकार अब इस वचन को तेजी से पूरा करने में जुट गई है।इसके लिए प्रदेश सरकार यूपीए सरकार में लागू वन अधिकार कानून पर अमल करेगी, आदिवासियों को ज़मीन का हक़ देने के लिए उनके दावों पर फिर से विचार करने जा रही है, इसको लेकर सरकार आज सुप्रीम कोर्ट में भी एक रिपोर्ट पेश कर रही है। इससे प्रदेश की इक्कीस फीसदी आबादी को मालिकान हक मिलेगा। इसकी शुरुआत दो अक्टूबर से होगी। सुत्रों की माने तो यह एक मास्टर स्ट्रोक है जिसके तहत कांग्रेस झाबुआ उपचुनाव की नैय्या पार करना चाहती है, चुंकी बीते चुनाव में मिली करारी हार के बाद सरकार अब कोई रिस्क नही लेना चाहती। इसलिए उन्हें साधने में जुट गई है।
खास बात तो ये है कि इसके लिए सरकार वन मित्र सॉफ्टवेयर तैयार कर रही है, जिसके जरिए आदिवासी दोबारा दावा कर सकेंगे। इसके लिए आदिवासी इलाकों में वन रक्षक नियुक्त किए जाएंगे जो आदिवासियों के दावों से जुड़ी जानकारी सॉफ्टवेयर में अपलोड करेंगे। इसके लिए वन रक्षकों को सरकार कुछ राशि का भुगतान करेगी। सरकार की कोशिश है कि वनक्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों को उनकी ज़मीन का अधिकार दिया जाए। सरकार का दावा है कि मार्च 2020 तक सभी दावों पर विचार कर आदिवासियों को जमीन का अधिकार दे दिया जाएगा।