देखी सुनी

आदमी ऐसी खूटियों और रस्सियों में बंधा होता है, जो कहीं भी नहीं है और उनका अस्तित्व नहीं है

मोहमाया के जूठे बंधन: अंधेरी रात है, आदमी धोखा खा जाता है, ऊंट का क्या विश्वास, ऊंट का क्या हिसाब, जाओ ऐसा ठोको, जैसे खूंटी ठोकी जा रही है। गले पर रस्सी बांधों, जैसे कि रस्सी बांधी जाती है और ऊंट से कहो कि सो जाओ, ऊंट सो जाएगा

एक बार अंधेरी रात में रेगिस्तानी सराय में एक काफिला जाकर ठहरा। उस काफिले के पास सौ ऊंट थे। उन्होंने ऊंट बांधे, खूंटियां गड़ाईं, लेकिन आखिर में पाया कि एक ऊंट अनबंधा रह गया है। उनकी एक खूंटी और एक रस्सी कहीं खो गई थी। आधी रात, बाजार बंद हो गए थे। अब वे कहां खूंटी लेने जाएं, कहां रस्सी!तो उन्होंने सराय के मालिक को उठाया और उससे कहा कि बड़ी कृपा होगी, एक खूंटी और एक रस्सी हमें चाहिए, हमारी खो गई है।

निन्यानबे ऊंट बंध गए, सौवां अनबंधा है। अंधेरी रात है, वह कहीं भटक सकता है। इस पर उस बूढ़े आदमी ने कहा: घबराओ मत। मेरे पास न तो रस्सी है और न खूंटी, लेकिन बड़े पागल आदमी हो। इतने दिन ऊंटों के साथ रहते हो गए, तुम्हें कुछ भी समझ न आई। जाओ जाकर खूंटी गाड़ दो और रस्सी बांध दो और ऊंट को कह दो सो जाए। उन्होंने कहा: पागल हम हैं कि तुम, अगर खूंटी हमारे पास होती तो हम तुम्हारे पास आते क्यों? कौन सी खूंटी गाड़ दें।

उस बूढ़े आदमी ने कहा: बड़े नासमझ हो, ऐसी खूंटियां भी गाड़ी जा सकती हैं, जो न हों और ऐसी रस्सियां भी बांधी जा सकती हैं, जिनका कोई अस्तित्व न हो। तुम जाओ, सिर्फ खूंटी ठोकने का उपक्रम करो। अंधेरी रात है, आदमी धोखा खा जाता है, ऊंट का क्या विश्वास, ऊंट का क्या हिसाब, जाओ ऐसा ठोको, जैसे खूंटी ठोकी जा रही है। गले पर रस्सी बांधों, जैसे कि रस्सी बांधी जाती है और ऊंट से कहो कि सो जाओ, ऊंट सो जाएगा।

अक्सर यहां मेहमान उतरते हैं, उनकी रस्सियां खो जाती हैं और मैं इसलिए तो रस्सियां-खूंटियां रखता नहीं, उनके बिना ही काम चल जाता है। मजबूरी थी, उसकी बात पर विश्वास तो नहीं पढ़ता था, लेकिन वे गए, उन्होंने गड्ढा खोदा, खूंटी ठोकी जो नहीं थी। सिर्फ आवाज हुई ठोकने की, ऊंट बैठ गया। खूंटी ठोकी जा रही थी। अब हर रोज रात को उसकी खूंटी ठुकती और वह बैठ जाता। उसके गले में उन्होंने हाथ डाला, रस्सी बांधी, रस्सी खूंटी से बांध दी गई जो नहीं थी।

ऊंट सो गया, इस पर वे बड़े हैरान हुए! एक बड़ी अद्भुत बात उनके हाथ लग गई। सो गए, सुबह उठे, सुबह जल्दी ही काफिला आगे बढऩा था। उन्होंने निन्यानबें ऊंटों की रस्सियां निकालीं, खूंटियां निकालीं वे ऊंट खड़े हो गए और सौवें की तो कोई खूंटी थी नहीं, जिसे निकालते। उन्होंने उसकी खूंटी नहीं निकाली और उसको धक्के दिए, लेकिन वह नहीं उठा।

उन्होंने कहा, हद हो गई, रात धोखा खाता था सो भी ठीक था, अब दिन के उजाले में भी इस मूर्ख को खूंटी नहीं दिखाई पड़ती कि नहीं है, वे उसे धक्के दिए चले गए, लेकिन ऊंट ने उठने से इनकार कर दिया। ऊंट बड़ा धार्मिक रहा होगा। वे अंदर गए, उन्होंने उस बूढ़े आदमी को कहा कि कोई जादू कर दिया क्या। क्या कर दिया तुमने, ऊंट उठता नहीं।

उसने कहा: बड़े पागल हो तुम, जाओ पहले खूंटी निकालो, पहले रस्सी खोलो। उन्होंने कहा: लेकिन रस्सी हो तब, उन्होंने कहा: रात कैसे बांधी थी? वैसे ही खोलो। गए मजबूरी थी, जाकर उन्होंने खूंटी उखाड़ी, आवाज की, खूंटी निकली, ऊंट उठ कर खड़ा हो गया। रस्सी खोली, ऊंट चलने के लिए तत्पर हो गया। उन्होंने उस बूढ़े आदमी को धन्यवाद दिया और कहा: बड़े अद्भुत हैं आप, ऊंटों के बाबत आपकी जानकारी बहुत है।

उन्होंने कहा कि नहीं, यह ऊंटों की जानकारी से सूत्र नहीं निकला, यह सूत्र आदमियों की जानकारी से निकला है। आदमी ऐसी खूटियों में बंधा होता है, जो कहीं भी नहीं है और ऐसी रस्सियों में जिनका कोई अस्तित्व नहीं है और जीवन भर बंधा रहता है। चिल्लाता है: मैं कैसे मुक्त हो जाऊं, कैसे परमात्मा को पा लूं, कैसे आत्मा को पा लूं, मुझे मुक्ति चाहिए, मोक्ष चाहिए, चिल्लाता है, पर हिलता नहीं अपनी जगह से क्योंकि खूंटियां उसे बांधे हैं।

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