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अस्पताल में मरीजों का हाल देख द्रवित हो उठीं, बीमार, बुजुर्गों के लिए डॉक्टर बिटिया

जनसेवा को बनाया जीवन का उद्देश्य, पिता की मौत के बाद की बहनों की शादी, मां की सेवा कर निभा रहीं बेटे का फर्ज

भोपाल. कोरोना संकट के दौर में कुछ सामाजिक संगठन जरूरतमंदों को भोजन उपलब्ध करा रहे हैं तो कुछ बेजुबान जानवरों की सहायता के लिए आगे आ रहे हैं। ऐसे में एक युवती अकेले ही बुजुर्गों को उपचार सुविधा और घर पहुंच सेवा उपलब्ध करा रही है। नेहरू नगर में अपनी मां के साथ किराये के मकान में रहने वाली इस युवती को गरीब मरीज ‘पहलवान डॉक्टरÓ तो बच्चों से दूर अलग रह रहे बुजुर्ग इन्हें डॉक्टर बेटी कहकर बुलाते हैं। ऐसे समय में जब कई अस्पताल और प्राइवेट नर्सिंग होम्स बुजुर्गों को भर्ती करने से बच रहे हैं। ऐसे समय में रूबी बुजुर्गों को उनके घर पर ही इलाज मुहैया करा रही हैं। ज्यादातर लोग इन्हें इनके असली नाम से नहीं बल्कि प्यार से पहलवान डॉक्टर या डॉक्टर बेटी के नाम से ही जानते हैं।

सेवा को बनाया जीवन का मिशन
गौरतलब है कि रूबी ने शादी नहीं की और अपने सेवा कार्य में ये इस कदर डूबीं कि जनसेवा को ही जीवन का उद्देश्य बना लिया। रूबी को स्पोट्र्स का बचपन से शौक रहा है। वे भोपाल को हॉकी का पुराना गौरव लौटाने की खातिर खुद को हॉकी खिलाड़ी के रूप में तैयार कर रही थीं, तभी एक रात पिता की तबीयत अचानक खराब हुई। इस दौरान उन्होंने अस्पताल में मरीजों का हाल देखा तो उनका मन द्रवित हो उठा। इसके बाद उन्होंने मरीजों की सेवा को ही जीवन का मिशन बना लिया।

गरीब मरीज कहते हैं डॉक्टर बिटिया
तीन बहनों में तीसरे नंबर की रूबी कृषि विभाग में पदस्थ पिता की मौत के बाद दोनों बहनों की शादी और बुजुर्ग मां की देखभाल के साथ पिछले 15 साल से मरीजों की सेवा में जुटी हुई हैं। वे खुद ऐसे मरीजों के घर पहुंचकर इंजेक्शन, ड्रेसिंग, ड्रिप इंजेक्शन, पेशेंट केयर, ओल्ड ऐज केयर, पोस्ट डिलीवरी केयर, फिजियोथैरेपी व डॉक्टर ऑन कॉल सेवा उपलब्ध करा रहीं हैं। जो मरीज बार-बार अस्पताल नहीं जा पाते या महंगी फीस अस्पताल में जमा नहीं कर पाते। ऐसे में लोग इन्हें पहलवान डॉक्टर कहने लगे क्योंकि ये कई बार गरीब मरीजों से मोटी रकम वसूलने वाले डॉक्टरों तक से भिड़ चुकी हैं।

इनके सहारे है बुजुर्गों की सेवा
डॉक्टर बेटी इसलिए, क्योंकि इनके कारण कई लोग बुजुर्ग माता-पिता को छोड़कर दूसरे शहरों में नौकरी कर रहे हैं। कोरोना महामारी के भीषण संकट को देखते हुए रूबी के पास ऐसे लोगों के कॉल आ रहे हैं, जिनके बच्चे महानगरों में हैं और वे घर पर अकेले हैं। ऐसे बुजुर्गों की देखभाल रूबी कर रही हैं। सुबह नींबू पानी पीने के बाद मुंह पर मास्क लगाकर लोगों की सेवा के लिए निकल पड़ती हैं। बुजुर्ग मरीजों को नर्सिंग केयर के दौरान वे सोशल डिस्टेंसिंग व सैनीटाइजेशन के साथ लॉकडाउन का भी पालन करती हैं। पिता की मौत के बाद आर्थिक स्थिति खराब हो गई।

संघर्ष कर सीखा नर्सिंंग का हुनर
पढ़ाई के लिए पैसे नहीं होने पर ट्यूशन किया और नर्सिंग का कार्य सीखा। इनका कहना है कि बुजुर्ग और मरीजों की सेवा करना सबसे बड़ा सुख है। अपने लगन-परिश्रम से रूबी अब तक हजारों मरीजों को उपचार लाभ पहुंचा चुकी हैं। ये मधुमेह, लकवा पीडि़त बुजुर्गों और बच्चों को विशेष सेवा प्रदान करती हैं। कोरोना के संक्रमण को देखते हुए ये बुजुर्ग, मरीजों में जीने का जज्बा पैदा कर रही हैं। ये इलाज के साथ मरीजों, बुजुर्गों से बातचीत कर उन्हें उचित खान-पान के लिए पे्ररित करती हैं।

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