अयोध्या
विहिप सुप्रीमो अशोक सिंहल अपने जीवन काल में मंदिर प्रबंधन को सरकारी नियन्त्रण से मुक्त रखने के हिमायती थे। उन्होंने आंध्र प्रदेश के तिरुपति बालाजी ट्रस्ट समेत देश के दूसरे भागों के सरकारी ट्रस्टों के खिलाफ मुहिम भी छेड़ी। उनकी अनुपस्थिति में संगठन का वर्तमान नेतृत्व भी उन्हीं के विचारों का अनुगामी है। यही कारण राम मंदिर के लिए गठित होने वाले ट्रस्ट को भी वह सरकारी नियन्त्रण से बाहर ही रखने का पक्षधर है।
संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं कि यदि सरकार उनसे सुझाव मांगेगी तो वह निश्चित ही अपना मत रखेंगे लेकिन इस बार मामला थोड़ा पेंचीदा है। इसके चलते संगठन का नेतृत्व सार्वजनिक रूप से कुछ भी कहने से बच रहा है। विराजमान रामलला के सखा त्रिलोकी नाथ पाण्डेय कहते हैं कि पूर्व में ट्रस्ट के सम्बन्ध में कई बार चर्चाएं हो चुकी हैं। इन चर्चाओं के दौरान शैव एवं उदासीन आचार्यों ने कहा कि रामजन्मभूमि का मामला रामानंदीय परम्परा का होने के कारण इसमें रामानंदीयों की प्रधानता होनी चाहिए। शेष सहयोगी हो सकते हैं।
वह कहते हैं कि ऐसे में हम सबकी मंशा है कि ट्रस्ट में रामानंदीय परम्परा के तीनों अखाड़ों का प्रतिनिधित्व हो। इसके अलावा राम मंदिर आन्दोलन में अपना योगदान देने वाले धर्माचार्यों को भी वरीयता दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को निर्देश दिया है। ऐसे में अब यह सरकार के ऊपर है कि वह किस प्रकार ट्रस्ट चाहती है। इसमें हस्तेक्षप का कोई प्रश्न नहीं है लेकिन सरकार हमारी राय जानना चाहेगी तो अवश्य ही हम अपना सुझाव देंगे। फिलहाल तो अभी सब कुछ गर्भ में हैं, इसलिए कुछ भी कहना अनुचित होगी। उन्होंने कहा कि राम मंदिर निर्माण का संकल्प सम्पूर्ण देशवासियों का था, यह संकल्प पूर्ण हो जाए, इसके लिए सब मंजूर है, यही हमारा अभीष्ट भी है।
विहिप के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा कहते हैं कि विहिप सुप्रीमो अशोक सिंहल जी का मानना था कि मंदिर प्रबंधन की स्वतंत्रता बाधित नहीं होनी चाहिए। उनके इस विचार से संगठन भी सहमत है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर प्रश्नचिह्न नहीं लगा सकते है। इसीलिए केन्द्र सरकार स्वयं से क्या निर्णय लेती है, यह उसका विचार होगा। फिलहाल संगठन की सोच है कि राम मंदिर निर्माण के जिस संकल्प अभियान की पूर्ति में सभी लगे थे, उन सभी को मिलाकर एक सर्वस्पर्शी ट्रस्ट बनाया जाना चाहिए।