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अब अदृश्य स्याही करेगी जाली नोटों की पहचान, कीमत 10 लाख रु/किलो

नई दिल्ली
ग्रेटर नोएडा स्थित शिव नाडर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कम कीमत वाली एक ऐसी स्याही तैयार की है, जो जाली नोटों की पहचान करने में मदद कर सकती है और इसका उपयोग आधिकारिक दस्तावेजों तथा रोगों का पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है। यह नई स्याही मौजूदा स्याही की तुलना में बेहतर सुरक्षा विशेषताओं वाली है।

मौजूदा स्याही अधिक महंगी है। इस नई स्याही के बारे में जर्नल आॅफ फिजिक्स केमिस्ट्री सी में विस्तृत जानकारी दी गई है। नई स्याही का इस्तेमाल सुरक्षा चिह्नों, आपात मार्ग चिह्नों, यातयात संकेत चिह्नों के अलावा चिकित्सा क्षेत्र में रोगों का पता लगाने के लिए कुछ विशेष जांचों में किया जा सकता है। शिव नाडर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक देबदास रे ने कहा हमारी सफेद पृष्ठभूमि वाली सुरक्षा स्याही सस्ती, जैविक संघटकों से बनाई गई है जिनका इस्तेमाल सूरज की रोशनी में किया जा सकता है।

वे संघटक पराबैंगनी (यूवी) किरणों के संपर्क में आने पर सफेद रंग में चमकते हैं। यह एकल संघटक वाली सुरक्षा स्याही बहु संघटक वाली सुरक्षा स्याहियों की तुलना में कहीं अधिक टिकाऊ होती हैं और विभिन्न पृष्ठभूमियों के तहत काम करती है। इस नई स्याही को तैयार करने में सिर्फ 45 मिनट का वक्त लगता है और इस पर प्रति ग्राम 1,000 रुपए की लागत आती है। इस तरह एक किलो यानी 1000 ग्राम की कीमत 10 लाख रुपए आएगी।

इस स्याही से दस्तावेजों पर कोई भी आकृति जैसे कि चिह्न, तस्वीरें, बार कोड आदि उकेरे जा सकते हैं, ताकि अतिरिक्त सुरक्षा उपलब्ध कराई जा सके। रे ने कहा, हम बैंक नोट, आधिकारिक दस्तावेजों, रक्षा सुरक्षा आदि में अतिरिक्त सुरक्षा के बारे में सोच सकते हैं। इस स्याही के इस्तेमाल के बाद दस्तावेजों पर उकेरे गए चिह्नों को देखने के लिए दस्तावेजों को पराबैंगनी (यूवी) प्रकाश के संपर्क में लाने की जरूरत होती है। रसायन विज्ञान विभाग के हर्ष भाटिया सहित अन्य शोधार्थियों ने बताया कि इस तकनीक ने बढ़ती साइबर चोरी के चलते आर्थिक एवं सैन्य क्षेत्र में अपनी ओर ध्यान आकृष्ट किया है। पिछले दशकों में सुरक्षा स्याही ने अपार अहमियत पाई है।

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