आरा
भोजपुर समेत बिहार के आर्सेनिक प्रभावित 16 जिलों में आगामी खरीफ सीजन से धान की सुरक्षित खेती की तैयारी चल रही है। आर्सेनिक दूषित मिट्टी में सुरक्षित खेती जैवोपचारण विधि से की जायेगी।
इसके लिए पहले किसानों में जागरूकता कार्यक्रम चलाया जायेगा। फिर कुछ किसानों में नि:शुल्क दवा वितरित की जायेगी, ताकि इसका समुचित प्रचार-प्रसार हो सके। अधिकाधिक किसान सुरक्षित खेती करें, इसका प्रयास भोजपुर समेत अन्य कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से होना है। भोजपुर कृषि विज्ञान केंद्र और सबौर के बिहार कृषि विवि (बीएयू) के संयुक्त तत्वावधान में पिछले खरीफ सीजन में भोजपुर के बड़हरा प्रखंड के कुदरिया गांव के किसान प्रभाकर सिंह के खेत में इस पर सर्वे किया गया था।
यहां सिंचाई वाले पानी व मिट्टी में आर्सेनिक की मात्रा क्रमश: 80 व 2500 पी.पी.बी. पायी गयी। यह तय मानक से अधिक है। कृषि वैज्ञानिकों की टीम ने मिट्टी व पानी से धान के पौधों में आर्सेनिक अवशोषण कम करने की दिशा में शोध करते हुए सफलतापूर्वक परीक्षण किया। फिर भागलपुर के खेत में भी इसका परीक्षण किया गया। शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने आर्सेनिक प्रदूषित मिट्टी में विशिष्ट बैक्टीरिया की पहचान की। इसके बाद बीएयू ने धान की फसल को आर्सेनिक से बचाने को ‘सबौर बायो-आर्सेनिक मिटिगेटर-1’ नामक बैक्टीरिया तैयार किया।
भोजपुर केविके के हेड एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक पीके द्विवेदी बताते हैं कि यह बहुत सस्ती दवा है। किसानों को इसे प्राप्त करने के बाद सूखे व ठंडे स्थान में रखना है।
होता है नुकसान
आर्सेनिक युक्त पानी का प्रयोग कृषि कार्य में बढ़ गया है। इससे मिट्टी में आर्सेनिक का संचयन हो रहा है। धान के पौधे खतरनाक स्तर पर आर्सेनिक अवशोषित करते हैं। इस पुआल से दुधारू मवेशियों का दूध भी आर्सेनिक युक्त हो रहा है। इस तरह आर्सेनिक की खतरनाक मात्रा मवेशियों के साथ मानव शरीर में पहुंच रही है।
प्रयोग की विधि
एक एकड़ रोपनी के लिए 50 लीटर पानी में 2.5 किलो गुड़ के ठंडे घोल व 500 मिली सबौर बायो-आर्सेनिक मिटिगेटर-1 का मिश्रण बनाएं व धान की रोपनी के पूर्व बिचड़ों की जड़ों को 30 मिनट के लिए जीवाणु के घोल में डुबाकर उपचारित करें। बचा हुआ घोल खेत में ही डाल देना है।
आर्सेनिक प्रभावित जिले
भोजपुर, बक्सर, सारण, पटना, वैशाली, बेगूसराय, भागलपुर, मुंगेर, खगड़िया, कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज, खगड़िया, सुपौल, दरभंगा और समस्तीपुर।
चावल और पुआल में कम होगा आर्सेनिक
डॉ द्विवेदी के अनुसार आर्सेनिक-3 घुलनशील होता है, जो आसानी से पौधों में चला जाता है। जैवोपचारण विधि से धान की खेती होने से यह बदलकर आर्सेनिक-5 हो जाता है, जो घुलनशील नहीं है। इससे चावल के साथ-साथ पुआल में भी आर्सेनिक की मात्रा में 50 फीसदी तक की कमी आयेगी। यह चावल नुकसानदेह नहीं होगा। साथ ही स्फूर तत्व के समुचित अवशोषण से धान के उत्पादन में तीन से पांच फीसदी की वृद्धि होगी। इससे किसानों को लाभ होगा।