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 हर सरकार को अपना सरप्लस फंड देता रहा है RBI, फिर किस बात की है लड़ाई

 
नई दिल्ली 

RBI एक्ट 1934 के मुताबिक भारतीय रिजर्व बैंक को अपने पास बचे सरप्लस फंड को अपने ओनर यानी सरकार को देना होता है. रिजर्व बैंक ने हर सरकार को ऐसा सरप्लस फंड दिया है. आइए जानते हैं कि क्या होता है यह सरप्लस फंड और आखि‍र किस बात को लेकर सरकार-रिजर्व बैंक में होती रही है तनातनी.

1.76 लाख करोड़ रुपये की राशि को मंजूरी के बाद केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच लंबे वक्त से चली आ रही तनातनी खत्म हो गई. पिछले साल इसी मुद्दे पर तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया था. पिछले साल नवंबर में दो बोर्ड बैठकों में केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच सरप्लस कैपिटल के ट्रांसफर जैसे कई मसलों पर टकराव पैदा हुआ था.

इसके पहले अपने पूरे इतिहास में भारतीय रिजर्व बैंक ने सबसे ज्यादा 65,896 करोड़ रुपये का सरप्लस फंड 2014-15 में सरकार को दिया है. केंद्रीय बैंक की ओर से सरकार को साल 2007-08 में 15,011 करोड़, 2008-09 में 25,009 करोड़, 2009-10 में 18,759 करोड़, 2010-11 में 15,009 करोड़, 2011-12 में 16,010 करोड़, 2012-13 में 33,010 करोड़ और 2013-14 में 52,679 करोड़ रुपये दिए गए थे.

नोटबंदी वाले साल 2016-17 में रिजर्व बैंक ने सरकार को सिर्फ 30,659 करोड़ रुपये का सरप्लस फंड दिया, जबकि सरकार ने 58,000 करोड़ रुपये की उम्मीद जाहिर की थी. जानकारों का तब तर्क था कि नोटबंदी के बाद नए नोट छापने के लिए रिजर्व बैंक को काफी रकम खर्च करनी पड़ी थी. साल 2017-18 में रिजर्व बैंक ने सरकार को अपने सरप्लस फंड से 50,000 करोड़ रुपये दिए थे. उस साल भी सरकार ने रिजर्व बैंक पर 13,000 करोड़ रुपये ज्यादा रकम देने का दबाव बनाया था.  

क्या है नियम

रिजर्व बैंक एक्ट के मुताबिक RBI अपने कर्मचारियों की सैलरी, पेंशन, एसेट के डिप्रिशिएशन, बैंकों के संकट के लिए प्रावधान आदि के बाद बची हुई रकम को सरकार को देता है, जिसे सरप्लस फंड कहते हैं. यह सरप्लस फंड रिजर्व बैंक कितना देगा इसके लिए कोई तय नियम नहीं है.

असल में रिजर्व बैंक जोखिम का विश्लेषण कर यह तय करता है कि सरकार को कितना सरप्लस मुनाफा वापस करना है. सरकार को देने के बाद जो रकम बचती है, उसे रिजर्व बैंक अपने रिजर्व में डाल देता है. सरकार तो ज्यादा से ज्यादा सरप्लस चाहती है, लेकिन रिजर्व बैंक बैकिंग व्यवस्था में किसी आपातकाल से निपटने के लिए अपने पास ज्यादा से ज्यादा रिजर्व रखना चाहता है.

हर साल बजट से पहले सरकार और रिजर्व बैंक के बीच इस पर चर्चा होती है. इसके बाद सरकार बजट में यह उम्मीद जाहिर करती है कि उसे आरबीआई से अगस्त महीने में कितना सरप्लस मिलेगा. इस नाते सरप्लस ट्रांसफर को लेकर सरकार और रिजर्व बैंक में कई बार मतभेद भी नजर आते हैं.

इस बार क्यों मिला ज्यादा पैसा

असल में जालान समिति ने सिफारिश की थी कि रिजर्व बैंक की आपात निधि उसके बहीखाते के 6.5 से 5.5 फीसदी तक होनी चाहिए. रिजर्व बैंक ने इसकी नीचे वाली सीमा को स्वीकार करते हुए आपात निधि को 5.5 फीसदी तक तय कर दिया. इसकी वजह से सरकार को इस साल 52,637 करोड़ रुपये की अतिरिक्त रकम मिल गई. इसके अलावा रिजर्व बैंक का 1,23,414 करोड़ रुपया का पूरा शुद्ध लाभ यानी सरप्लस भी सरकार को देने का निर्णय लिया गया.

कैसे मिलता है रिजर्व बैंक को फायदा

रिजर्व बैंक करेंसी नोट छापता है और कॉमर्श‍ियल बैंकों को डिपॉजिट जारी करता है. ये ऐसे एसेट होते हैं जिन पर रिजर्व बैंक को कुछ खास ब्याज नहीं देना पड़ता. इसके अलावा रिजर्व बैंक देश और विदेश की सरकारों का बॉन्ड भी खरीदता है. इन बॉन्ड पर रिजर्व बैंक को ब्याज मिलता है. इस तरह रिजर्व बैंक की देनदारी बहुत कम होती है और उसे ब्याज से काफी आय होती है. कुल ब्याज आय का करीब 14 फीसदी हिस्सा रिजर्व बैंक को नोटों की छपाई पर खर्च करना पड़ता है.

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