मध्य प्रदेश

स्वास्थ्य विभाग मेडिकल कॉलेजों के डीन के साथ वायरल फीवर पर करेंगे रिसर्च

भोपाल
सामान्यत: वायरल बुखार दो तीन दिनों में ठीक हो जाता है। लेकिन बीते कुछ सालों में वायरल फीवर की अवधि बढ़ी है। अब आठ से दस दिनों में भी वायरल बुखार नहीं जा रहा है। इसकी चपेट में बच्चों की हालत ज्यादा खराब हो रही है। जल्दी ठीक होने के चक्कर में डॉक्टर भी मरीजों को हाइ एंटीबायोटिक डोज दे रहे हैं। इससे भी वॉडी में रेजिस्टेंस डेवलप हो रहा है। इन सब कारणों पर शोध करने के लिए स्वास्थ्य महकमा मेडिकल कॉलेजों के डीन के साथ मिलकर वायरल फीवर रिसर्च प्रोग्राम शुरू करने जा रहा है।

पिछले महीने में वायरल फीवर के आंकडों पर गौर किया जाये तो 68 हजार से ज्यादा बुखार के मरीज सामने आये हैं। मौसम में बदलाव की वजह से आने वाले बुखार के साथ दो तीन दिन में ठीक होने वाला वायरल फीवर अब आठ दस दिनों में ठीक हो पा रहा है। डॉक्टर अपने कमीशन के चक्कर में फिक्स मेडिकल स्टोर से 250-400 और 500 एमजी तक की दवायें दे रहे हैं। इससे बुखार के दोबारा वापस आने की संभावना ज्यादा रहती है। साथ ही अनावश्यक एंटीबायोटिक डोज भी नुकसान पंहुचा रहा है। एंटीबायोटिक दवाओं के दुरूपयोग रोकने प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने एम्स के साथ मिलकर एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस पॉलिसी को अमल में लाना शुरू कर दिया है। लेकिन आमजन को इस पॉलिसी की ज्यादा जानकारी न होने के कारण वे भी एंटीबायोटिक का बेतहाशा उपयोग कर रहे हैं। एम्स भोपाल में शुक्रवार को पॉलिसी पर चर्चा भी हुई।

 

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