भोपाल
विरोध और देशभर में जमकर किरकिरी होने के बाद प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने नसबंदी को लेकर स्वास्थ्य कर्मचारियों को लेकर जारी किए गए फरमान को वापस ले लिया है।जिसमें कहा गया था कि कम से कम एक सदस्य की नसबंदी कराना अनिवार्य है और ऐसा ना होने पर एक महिने का वेतन काटा जाएगा।साथ ही अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का भी प्रस्ताव बनेगा। जारी होते ही यह आदेश चर्चा का विषय बन गया था और सरकार की जमकर किरकिरी होने लगी थी। कर्मचारियों ने भी इसका विरोध किया था वही बीजेपी ने इसे आपातकाल पार्ट-2 बताया था।हालांकि यह पहला मौका नही है इसके पहले भी सरकार कई फैसलों पर यू-टर्न ले चुकी है।इधर, इस मामले में लापरवाही बरतने के आरोप में मिशन संचालक छवि भारद्वाज को हटा दिया गया है, उन्हें मंत्रालय में OSD पदस्थ किया गया।
दरअसल, स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को पुरूष नसबंदी के लक्ष्य पूरा ना करने पर में वेतन में कटौती और अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने तक का आदेश दिया गया था। परिवार नियोजन कार्यक्रम मेंटारर्गेट पूरा ना करने पर नो पे, नो वर्क के आधार और वेतन ना देने की बात कही है।वही कर्मचारियों के लिये पाँच से दस पुरूषों की नसबंदी कराना अनिवार्य किया गया था । राज्य के एनएचएम मिशन के निदेशक की ओर से जारी सर्कुलर में कहा गया था कि यदि स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो हेल्थ वर्कर्स (एमपीएचडब्ल्यू) की अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सिफारिश की जाएगी और इसके प्रस्तावों को जिला कलेक्टरों के जरिए भोपाल में एनएचएम मुख्यालय भेज दिया जाएगा।इसके बाद इस प्रस्ताव को आगे की कार्यवाही के लिए स्वास्थ्य निदेशालय को भेजा जाएगा।
गौरतलब है कि वर्तमान में मप्र की आबादी 7 करोड़ से अधिक है। प्रदेश में 25 जिले ऐसे हैं, जहां का टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफआर) तीन से अधिक है, जबकि मप्र में 2.1 टीएफआर का लक्ष्य है। ऐसे में हर साल 6 से 7 लाख नसबंदी ऑपरेशन के टारेगट होते हैं, लेकिन पिछले साल ये संख्या सिर्फ 2514 रही। कोई भी जिला अपना टारगेट पूरा नही कर पाया।इसी के चलते राज्य सरकार ने कर्मचारियों को परिवार नियोजन के अभियान के तहत टारगेट पूरा करने के निर्देश दिए थे, जिसके बाद सरकार की देशभर में जमकर किरकिरी हुई। वही बीजेपी और कर्मचारियों ने भी इस पर नाराजगी जताई जिसके बाद सरकार को ये आदेश वापस लेना पड़ा।
बीजेपी ने जमकर किया था विरोध
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज ने ट्वीट कर लिखा था कि मध्यप्रदेश में अघोषित आपातकाल है। क्या ये कांग्रेस का इमर्जेंसी पार्ट-2 है? एमपीएचडब्ल्यू (Male Multi Purpose Health Workers) के प्रयास में कमी हो, तो सरकार कार्रवाई करे, लेकिन लक्ष्य पूरे नहीं होने पर वेतन रोकना और सेवानिवृत्त करने का निर्णय, तानाशाही है।वही प्रदेश के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और भाजपा विधायक नरोत्तम मिश्रा ने सरकार के इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई थी ।उनका कहना था कि सरकार का यह निर्णय आपातकाल के दिनों की याद दिलाता है और कमलनाथ उसी मानसिकता से काम करते हुए दिख रहे हैं ।नरोत्तम मिश्रा ने यह भी कहा कि सरकार के इस निर्णय से वैसे ही हाल होंगे, जब आपातकाल में उन लोगों की भी नसबंदी कर दी गई थी जिनकी शादी तक नहीं हुई थी।