भोपाल
मुख्यमंत्री के निर्देश पर भले ही प्रदेश में माफिया के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन खनिज विभाग अब भी सक्रिय नहीं हो पा रहा है। हालात यह है कि अब भी राजधानी और उसके आसपास खजिन माफिया का काम बेरोकटोक जारी है। अवैध उत्खनन के चलते खदानों में जमकर नियम टूट रहे हैं। रोजाना 200 गाडिय़ा अवैध रूप से परिवहन का काम कर रही हैं। यही नहीं खदानों में मनमर्जी के उत्खनन के चलते समतल मैदान भी गड्ढ़ों में तब्दील हो गए हैं। यही नहीं रेत का इसी तरह से परिवहन कई थानों की पुलिस और खनिज चौकियों के सामने से जारी है। पावर फुल इस लॉबी के आगे खनिज विभाग का अमला भी असहाय बना हुआ है। खास बात तो यह है कि इन खदानों का सीमांकन कर इनकी हद तय करने के निर्देश कलेक्टर-कमिश्नर तक दे चुके हैं, लेकिन विभागीय अमले ने इनके निर्देशों को भी हवा कर दिया। ऐसे में खदान संचालकों ने अवैध उत्खनन के मामले में सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं।
आवंटित खदानों की हद तय करने के लिए लगाई जाने वाली मुनारों में ही तोडफ़ोड़ कर खनिज संपदा की चोरी की जा रही है। 135 चालू खदानों में 35 खदानों की मुनारें टूटी हुईं हैं या गायब कर दीं गईं हैं। बरोड़ा नाथू, बैरसिया रोड, नीलबड़, सिकंदराबाद, परवलिया में संचालित हो रहीं खदानों में ज्यादा गड़बड़ी है। कहने को तो कांक्रीट की मुनारें लगानी चाहिए, लेकिन यहां सिर्फ नाम के लिए खंबे खड़े कर दिए जाते हैं। यदा कदा टीम जाती भी है तो ये खंबे भी स्पॉट पर नहीं मिलते। नियमानुसार खदान चौकोर है तो उसे चार मुनारों से कवर करना है, अगर थोड़ा सा साइज अलग है तो उसमें पांच मुनारें लगाने का नियम है। इस पर सख्ंया भी डली होनी चाहिए। लोहे के तार की फेंसिंग इन मुनारों के आधार पर होती है, लेकिन इसका पालन भी खनिज विभाग नहीं करा पा रहा है।
जिले में संचालित अधिकांश खदानों में नियम विरूद्ध हो रहे उत्खनन की शिकायतों के बाद सबसे पहले तत्कालीन कलेक्टर निशांत वरवड़े ने सभी खदानों के सीमांकन करने के निर्देश दिए थे। इस निर्देश के बाद खनिज अमले ने कुछ खदानों का सीमांकन तो किया था, लेकिन कलेक्टर के हटते ही इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। हालांकि अवैध उतखनन की बढ़ती शिकायतों पर पूर्व कलेक्टर सुदाम खाडे ने खदानों की जांच एक बार फिर शुरू कराई थी। इसके तहत खदानों की जांच कर, वहां सुरक्षा के इंतजाम कराने थे। यही नहीं जहां अवैध उत्खनन हुआ है, उनकी सूची बनाकर कार्रवाई करनी थी। इस पर कुछ खदानों की जांच हुई और सुरक्षा के इंतजाम भी हुए, लेकिन बाद में मामला फाइलों में दफन हो कर रह गया। खदानों को लेकर लापरवाह अफसरों पर जब कलेक्टर तरूण पिथोड़े ने सख्ती दिखाई तब आधा दर्जन खदानों को सील करने की कार्रवाई की गई। जिले में वर्तमान में करीब सौ खदानों से काली गिट्टी निकाली जा रही है। इन खदान संचालकों ने काला पत्थर निकलने तक की अनुमति ले रखी है, जिससे क्रेशर संचालक रोजाना पांच से दस डंपर तक गिट्टी निकाल रहे हैं। ऐसे में यह खदानें सौ से डेढ़ सौ फीट तक गहरी हो गईं हैं। इधर इन खदानों की जांच नहीं होने की वजह से काली गिट्टी का अवैध परिवहन शहर में जमकर चल रहा है।
गत कुछ माह में बरोड़ा नाथू, कलोड़ा, बेरोड़ी बजायता और सलैया-सनोड़ी से अवैध उत्खनन और परिवहन बढ़ा है। यहां रात के अंधेरे मुरम का अवैध परिवहन किया जाता है। क्षेत्रीय लोगों की माने तो रोजाना दो सौ से अधिक गाडिय़ों की आवाजाही होती है। शिकायत करने पर कुछ दिन यह सिलसिला रूक जाता है। इसके बाद फिर से यह सिलसिला शुरू हो जाता है। इससे शासन को करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान हो रहा है।