भोपाल
एमपी में इन दिनों विधायकों पर संकट के बादल मंडराने लगे है।हाल ही में भाजपा विधायक प्रहलाद लोधी को तहसीलदार से मारपीट मामले में भोपाल की विशेष अदालत ने दो साल की जेल और साढ़े तीन हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। जिसके बाद विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने उनकी सदस्यता खत्म करने का आदेश जारी कर दिया था।इसके बाद लोधी ने जबलपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और कोर्ट ने उन्हें बड़ी राहत देते हुए सात जनवरी 2020 तक रोक लगा दी है।हालांकि अभी तक लोधी की सदस्यता बहाल नही हो पाई है।इसी बीच अब कांग्रेस विधायक जजपाल सिंह 'जज्जी' की सदस्यता खतरे में पड़ती नजर आ रही है।
दरअसल, जज्जी के बार बार जाति बदलने के मामले ने फिर तूल पकड़ लिया है। आरोप है कि पहले वे सामान्य कोटे से जनपद सदस्य निर्वाचित हुए फिर कीर जाति के आधार पर ओबीसी के लिए आरक्षित नगरपालिका परिषद अशोकनगर के अध्यक्ष बने। इसके बाद खुद को 'नट' जाति का बताकर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित विधानसभा सीट अशोकनगर से चुनाव लड़े और विधायक चुन लिए गए। वही पुलिस और प्रशासन की जांच में जज्जी का सिख जाति का होना पाया गया। लेकिन हाल ही में हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मामला फिर छानबीन समिति के पास पहुंच गया है।
वही बीजेपी ने भी इस मौके को लपकते हुए राज्यपाल लालजी टंडन के पास जाने का फैसला किया है ताकि फर्जी जाति के आधार पर चुनाव लड़ने के कारण जज्जी को अयोग्य घोषित कराया जा सके।बीजेपी इस मामले को शीतकालीन सत्र से पहले जोरशोर से उठाने की तैयारी में है। इसका फायदा यह होगा कि कांग्रेस का एक विधायक कम हो सकता है। मामला गर्माने के बाद कांग्रेस में हड़कंप मच गया है। उधर, विधानसभा के शीतकालीन सत्र से पहले नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने भी सभी बीजेपी विधायकों से अपने अपने आपराधिक रिकॉर्ड जमा कराने को कहा है।
क्या है मामला
वर्ष 2013 में जजपाल सिंह जज्जी के दअनुसूचित जाति प्रमाण पत्र को लेकर मध्य प्रदेश की जाति प्रमाण पत्र को लेकर काम करने वाली उच्च स्तरीय छानबीन समिति के समक्ष कुछ शिकायतें की गई थी। जिनकी सुनवाई करते हुए छानबीन समिति ने 16 सितम्बर 2013 को जज्जी का प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया था। जज्जी ने इसी आदेश को कोर्ट में यह कह कर चुनोती दी थी कि उनके साथ न्याय नही किया एवं फैसला राजनीति से प्रेरित है।इस बीच कोर्ट ने सुनबाई के दौरान जज्जी को छानवीन समिति के आदेश पर स्टे भी दे दिया था।हालिया विधानसभा चुनाव में यह मामला तूल पकड़ा था और अब लोधी की सदस्यता बहाल ना होने पर एक बार फिर मामले ने जोर पकड़ लिया है। बीजेपी भी इसे पूरे जोर-शोर से भुनाने में जुटी है।