राजनीति

लोकसभा चुनाव से दिल्ली चुनाव के आठ महीने, कांग्रेस छोड़ आप के पाले में क्यों आ गए मुस्लिम मतदाता?

नई दिल्ली

पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण का मतदान होने से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने बड़ा बयान दिया था। इस बयान में उनकी हताशा साफ दिख रही थी। उन्होंने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा, 'मतदान से 48 घंटे पहले यह लग रहा था कि आम आदमी पार्टी सभी 7 सीटों पर जीत हासिल करेगी, लेकिन आखिरी वक्त में मुस्लिम मतदाता कांग्रेस की ओर शिफ्ट हो गए। हम अब भी यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि असल में क्या हुआ।'

 

60% मुस्लिम मतदाता आप के साथ

अब जब दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग के बाद हरेक एग्जिट पोल में आप की वापसी का अनुमान है। एग्जिट पोल की मानें तो दिल्ली के 60 फीसदी वोटर्स ने आप को वोट दिया है। साफ है केजरीवाल ने वाकई में मुस्लिम मतदाताओं का मिजाज पढ़ने की गंभीर कोशिश की होगी और इस काम में उन्हें सफलता भी मिली है। दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों में एकतरफा आप को ही वोट पड़ा है। इक्के-दुक्के मुसलमान मतदाताओं ने कांग्रेस कैंडिडेट्स को इसलिए वोट किया क्योंकि पार्टी सीएए के खिलाफ मजबूती से मोर्चा लेते दिख रही है।

 

क्यों छोड़ा कांग्रेस का साथ?

आखिर, लोकसभा चुनाव के महज आठ महीने में ही ऐसा क्या हो गया कि मुसलमान संगठित होकर केजरीवाल की तरफ आ गए? इसका जवाब भी कुछ हद तक एग्जिट पोल के नतीजों में ढूंढा जा सकता है। कहा जा रहा है कि इस चुनाव में महज 14.5% मुसलमानों ने ही कांग्रेस का साथ दिया।

 

लोकसभा बनाम दिल्ली चुनाव

दरअसल, मुसलमानों ने लोकसभा चुनाव में आप को तवज्जो इसलिए नहीं दी थी क्योंकि उन्हें लगा कि राष्ट्रीय चुनाव में कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय आधार वाली पार्टी ही बीजेपी को टक्कर दे सकती है, आप जैसा क्षेत्रीय दल नहीं। दिल्ली चुनाव में पासा बदल गया और उन्हें लगा कि यहां तो उनका कांग्रेस को दिया हरेक वोट आप को कमजोर करेगा और फिर बीजेपी बाजी मार जाएगी। इसलिए केजरीवाल को मजबूत करने के लिए उनका एकमुश्त वोट आप को गया।

 

कांग्रेस ने की चालाकी?

मुसलमानों का मन पढ़ते हुए कांग्रेस ने भी दिल्ली चुनाव में ताकत नहीं लगाई। पार्टी ने ठीक से प्रचार तक नहीं किया। शायद पार्टी की रणनीति यही थी कि मुस्लिम वोटों का बंटवारा नहीं हो। शायद उसने मान लिया कि दिल्ली में 2015 के मुकाबले उसका प्रदर्शन बहुत नहीं सुधरने वाला। हां, मुस्लिमों का वोट बंटने से बीजेपी को फायदा जरूर हो जाएगा।

 

मोदी 2.0 के फैसले और मुसलमान

लोकसभा चुनाव से लेकर दिल्ली चुनाव आते-आते परिस्थितियां भी बदल चुकी थीं। तीन तलाक को आपराधिक श्रेणी में रखते हुए सजा का प्रावधान करने वाला कानून लाने से मुसलमानों में नाराजगी बढ़ी। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का पूरे देश में जमकर विरोध हुआ। शाहीन बाग में आज करीब दो महीने से प्रदर्शन हो रहे हैं। इस बीच जब दिल्ली चुनाव में अपनी वोट की ताकत दिखाने का मौका मिला तो स्वाभाविक है कि मुसलमानों ने बेहद रणनीतिक तरीके से एक-एक वोट उसे दिया जिसमें बीजेपी को करारी शिकस्त देने का माद्दा हो।

 

'मुफ्त योजनाओं' का आकर्षण

इसके साथ ही, आप सरकार की मुफ्त-मुफ्त-मुफ्त योजनाओं ने भी दूसरे वोटरों की तरह मुस्लिम मतदाताओं का भी दिल जीता। वह चाहे मुफ्त बिजली, पानी या बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा की बात हो या फिर स्कूलों एवं अस्पतालों की हालत में सुधार का दावा, वोटरों ने आप और केजरीवाल पर भरोसा किया।कहा जा सकता है कि चूंकि मुस्लिम मतदाता अपने मकसद में स्पष्ट लोकसभा चुनाव के वक्त भी थे और दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी। इसलिए उन्होंने दोनों चुनावों में बीजेपी के खिलाफ मोर्चेबंदी के लिहाज से ताकतवर पार्टी का चयन किया।

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