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राष्ट्रीय राजनीति के लिए क्या है केजरीवाल का प्लान, शपथ ग्रहण में नहीं खोले पत्ते

नई दिल्ली
आम आदमी पार्टी (AAP) के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने लगातार तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण कर ली. केंद्र की मोदी सरकार की जबरदस्त घेरेबंदी और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों, सांसदों की भारी-भरकम फौज के बावजूद सत्ता तक पहुंचने वाले केजरीवाल पर विपक्ष की भी नजरें थीं. सबको ऐसी उम्मीद थी कि दिल्ली की जंग जीतने के बाद केजरीवाल अब राष्ट्रीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को मात देने के लिए कोई प्लान पेश करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

शपथ ग्रहण के दौरान केजरीवाल का पूरा फोकस सिर्फ और सिर्फ दिल्ली पर ही रहा. केजरीवाल ने बार-बार विकास के दिल्ली मॉडल का जिक्र तो किया, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति के लिए उनका क्या प्लान है, इस पर फिलहाल पत्ते नहीं खोले. हालांकि उनके बयानों से राष्ट्रीय राजनीति की महत्वाकांक्षा भी साफ जाहिर हो रही थी.

दरअसल 11 फरवरी को जब AAP को भारी भरकम जनादेश मिला तो लोग केजरीवाल में मोदी का विकल्प भी तलाशने लगे थे. उसके बाद से माना जा रहा था कि शपथ ग्रहण के दौरान केजरीवाल दिल्ली से निकलकर राष्ट्रीय फलक पर छाने के लिए कोई संदेश देंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. केजरीवाल ने 'दिल्ली का बेटा' बनकर ही लोगों से बात की. केजरीवाल ने अपने संबोधन की शुरुआत भारत माता की जय, इंकलाब जिंदाबाद और वंदे मातरम के नारे से की.

बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा का मुद्दा प्रमुखता से रखते हुए केजरीवाल ने कहा कि अब उनके दिल्ली मॉडल को दूसरे राज्यों की सरकारें भी अपना रही हैं. उन्होंने यह जरूर कहा कि देश में भविष्य की चुनावी राजनीति अब विकास के मुद्दे पर केंद्रित होगी. धरना-प्रदर्शन और अनशन के बाद साल 2012 में अस्तित्व में आई केजरीवाल की पार्टी ने 2013 में कांग्रेस से गठबंधन कर कुछ दिनों तक सरकार चलाई. हालांकि ये सरकार जनलोकपाल के मुद्दे के चलते ज्यादा दिन नहीं चली और केजरीवाल ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया.

साल 2015 में आम आदमी पार्टी की सरकार फिर आई, लेकिन विवादों से उसका नाता नहीं छूट पाया. कभी केजरीवाल की दिल्ली सरकार के अफसरों से ठनी तो कभी वो राज्यपाल को रुकावट की बड़ी वजह बताते रहे. इस बीच केजरीवाल दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने की मांग पर भी डटे रहे, लेकिन 2020 में केजरीवाल जब दिल्ली के दंगल में उतरे तो उन्होंने विवादों से दूरी बनाने की कोशिश. यहीं नहीं, सांप्रदायिक मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती बीजेपी की राजनीति के सामने स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा और प्रचंड जीत भी हासिल की.

चुनाव से तीन हफ्ते पहले दिल्ली चुनाव एकतरफा माना जा रहा था, लेकिन जब बीजेपी मैदान में पूरी ताकत के साथ उतरी तो चुनावी रोमांच बढ़ गया. इस चुनाव में शाहीन बाग के मुद्दे को लेकर बीजेपी ने हर हथकंडा अपनाया. शाहीन बाग के मुद्दे पर केजरीवाल न तो इसके समर्थन में कुछ बोले, और ना ही इसके विरोध में ही कोई बयान दिया. शाहीन बाग को लेकर केजरीवाल ने बस इतना कहा कि रास्ता खुलना चाहिए. अमित शाह ने तो शाहीन बाग को लेकर खुद मोर्चा खोल दिया था, लेकिन केजरीवाल अपने दिल्ली मॉडल पर वोट मांगते रहे. जब नतीजे आए, तो ये मुद्दा उल्टा बीजेपी को ही भारी पड़ गया.

2014 के लोकसभा चुनाव में नई नवेली आम आदमी पार्टी ने 400 से ज्यादा उम्मीदवार उतारे थे. वाराणसी में नरेंद्र मोदी के खिलाफ खुद केजरीवाल चुनावी मैदान में उतरे थे. इस चुनाव में AAP को करारी शिकस्त मिली थी. हालांकि इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल ने केंद्र से टकराव और पीएम मोदी पर सीधे हमलों को छोड़कर दिल्ली के विकास मॉडल पर ध्यान दिया.

दिल्ली चुनाव की घोषणा के बाद 6 जनवरी को अरविंद केजरीवाल का 'काम किया है तो वोट देना, वरना मत देना'  ये बयान सामने आया था. इसके सहारे आम आदमी पार्टी ने वो इतिहास रचा, जो राजनीति में लंबे वक्त तक याद किया जाएगा. इस चुनाव में विवादित मुद्दों और बयानों पर विपक्ष ने आम आदमी पार्टी को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन केजरीवाल इससे इतर विवादित मुद्दों को अपने काम के मॉडल पर हावी नहीं होने दिया. शायद यही वजह थी काम के नाम पर दिल्ली में AAP ने 70 सीटों में से 62 पर कब्जा जमाया.

केजरीवाल सरकार ने प्राइवेट स्कूलों में हर साल बढ़ने वाली 10 से 20 फीसदी फीस पर रोक लगाई, जो पैरेंट्स के लिए बड़ी राहत भरी बात रही. इसके अलावा सरकारी स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर दिया और पाठ्यक्रम में बदलाव किया. साथ ही सरकार ने बोर्ड परीक्षाओं में लगने वाली फीस भी अपने खजाने से दी, जिससे करीब 2 लाख बच्चों को फायदा हुआ. वहीं, 12वीं पास स्टूडेंट्स के लिए कोचिंग (1.5 लाख तक) का बंदोबस्त भी किया गया.

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