नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भतीजी से स्नैचिंग के दोनों आरोपियों को वारदात के अगले दिन दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। एक ओर जहां कुछ लोगों ने दिल्ली पुलिस की इस सक्रियता की सराहना की, तो दूसरी ओर कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर इसे लेकर पुलिस पर सवाल भी उठाए। स्नैचिंग केस के अन्य कई पीड़ितों ने सोशल मीडिया पर दिल्ली पुलिस से इसी तरह आम लोगों के मामले भी सुलझाने की नसीहत दी। डेटा पर नजर डालें, तो हकीकत भी कुछ ऐसी ही दिखती है।
पुलिस डेटा के मुताबिक, इस साल 30 सितंबर तक दर्ज किए स्नैचिंग के कुल मामलों में लगभग आधे केस ही सुलझाए गए हैं। सितंबर तक स्नैचिंग के 4,762 केस दर्ज हुए, जिनमें से 2,686 दिल्ली पुलिस ने सुलझाए।
आशीष दीक्षित नाम के एक पीड़ित ने सोमवार को दिल्ली पुलिस को टैग करते हुए ट्वीट किया कि दो साल पहले उनके साथ लूट हुई और काफी खोजबीन के बाद एफआईआर दर्ज की गई थी, लेकिन उसके बाद आज तक कुछ भी नहीं हुआ। उन्होंने पीएम की भतीजी के मामले में पुलिस की तेजी पर भी तंज कसा।
नहीं मिल पाता साक्ष्य
पुलिस सूत्रों का कहना है कि स्नैचिंग के सुलझाए गए मामलों का अनुपात कम होने की वजह चुराए गए सामान की बरामदगी न होना है। नाम न छापने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी ने कहा, 'चूंकि चुराई गई वस्तुओं की बरामदगी एक महत्वपूर्ण साक्ष्य है। वारदात के कुछ दिनों के भीतर चोरी किए गए लगभग सभी सामन या तो बेच दिए जाते हैं या नष्ट कर दिए जाते हैं।'
सबसे ज्यादा मोबाइल फोन की स्नैचिंग
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि लगभग 80 पर्सेंट मामलों में स्नैचिंग में शामिल अपराधी पहली बार के अपराधी पाए जाते हैं। ये आमतौर पर मोबाइल फोन, सोने की चेन और कैश आदि लूटते हैं, जिनके बरामद होने का आंकड़ा बहुत कम है। दिल्ली पुलिस के अनुसार, आधे मामलों में मोबाइल फोन और 23 पर्सेंट मामलों में सोने की चेन या मंगलसूत्र की स्नैचिंग होती है। बाकी स्नैचिंग वाली वस्तुओं में बैग, लैपटॉप और ब्रीफकेस शामिल हैं, जिन्हें अपराधी वारदात करने के तुरंत बाद आसानी से ठिकाने लगा देते हैं।