आईसीएमआर द्वारा किए गए शोध में हुआ खुलासा
रोहित वर्मा
भोपाल. यूनियन कार्बाइड का जहर 35 साल बाद भी अपना असर दिखा रहा है। कारखाने के आसपास आबाद हो चुकी बस्तियों के रहवासी तरह-तरह की बीमारियों से ग्रसित हैं। यहां पैदा होने वाले बच्चे मानसिक व शारीरिक रूप से विकृत पैदा हो रहे हैं। गैस प्रभावितों के मानसिक और शारीकि रूप से विकृत बच्चों के लिए चलाए जा रहे चिंगारी ट्स्ट की ट्स्ट्ी रशीदा बी ने बताया कि दो 2 तीन दिसम्बर 1984 की रात गैस रिसने के बाद वैज्ञानिकों ने सरकार को इस बात से अवगत करा दिया था कि इसका असर कम से कम तीन पीढिय़ों तक बना रहेगा। यूनियन कार्बाइड के मिले दस्तावेज भी यही हकीकत बयां करते हैं कि जिनके अंदर यह गैस चली गई है, उसके साथ-साथ आने वाली तीन पीढिय़ों तक को यह प्रभावित कर सकती है।
रशीदा बी ने बताया कि यूनियन कार्बाइड कारखाने में गैस रिसने के बाद 16 दिसम्बर 1984 को टैंको में बचे केमिकल को जमीन में डंप कर दिया गया था। डंप किया गया यह केमिकल युक्त पानी और गैस जमीन के अंदर बारिश के पानी के साथ भू-जल में मिल गया। कुछ समय बाद कारखाने के आसपास लोगों ने रहना शुरू कर दिया। लोगों ने हैंडपंप खोदकर उसका पानी पीने सहित अन्य कार्यों में उपयोग करने लगे। वहां रह रहे लोगों में से किसी को भी पता नहीं था कि इस पानी में कार्बाइड या जहर मिला हुआ है। कुछ दिनों बाद इन बस्तियों में रह रहे परिवारों की महिलाओं, पुरुषों और बच्चों में तरह-तरह की बीमारियां पनपने लगीं।
यहां पैदा होने वाले ज्यादातर बच्चे मानसिक और शारीरिक तौर पर विकृत और विकलांग पैदा होने लगे। इन बस्तियों के जल स्त्रोतों, हैंडपंप कुओं सहित भूमिगत जल की जांच कराई गई तो पता चला कि जिन लोगों ने यहां खोदे गए हैंडपंप के पानी का उपयोग किया है या कर रहे हैं वो तरह-तरह की बीमारियों से ग्रसित होंगे ही बच्चे भी शारीरिक और मानसिक तौर पर विकलांग और विकृत पैदा होंगे। कुछ वर्षों बाद सामने आया कि इन बस्तियों में सबसे ज्यादा बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से विकृत पैदा हो रहे हैं। देखते ही देखते यह बस्तियां शारीरिक और मानसिक रूप से विकालांग और विकृत बच्चों की बस्ती बन गई।
इन बीमारियों से बचाव के लिए पहले कारखाने के आसपास की 14 बस्तियों के भूमिगत जल की जांच कराई गई। इनमें जहरीले तत्व पाए जाने पर 22 बस्तियों की जांच कराई गई। धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ता गया और तीसरे चरण में 42 बस्तियों की जांच कराई गई। इनमें भी जहरीले रसायन पाए जाने पर इसके आसपास आबाद 48 बस्तियों की जांच कराई जा चुकी है।
नौ प्रतिशत बच्चों में जन्मजात विकृतियां मिली
गौरतलब है कि वर्ष 2016 से जून 2017 तक भारतीय चिकित्सा अनुसांधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा किए गए एक रिसर्च में गैस पीडि़त महिलाओं और सामान्य महिलाओं में काफी अंतर पाया गया। पर्यावरणीय शोध के लिए राष्ट्रीय संस्थान (एनआईआरईएच) से मिले दस्तावेजों के अनुसार इस अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता डॉ. रूमा गलगलेकर ने गैस पीडि़त माताओं के 1048 बच्चो में से नौ प्रतिशत में जन्मजात विकृतियां पाईं हैं, जबकि अपीडि़त माताओं के 1247 बच्चों में से 1.3 प्रतिशत बच्चे विकृत पाए गए।
दिसम्बर 2014 से जनवरी 2017 तक तीन साइंटिफिक एडवाइजरी कमेटी (एसएसी) की बैठकों में इसे स्वीकृत दी गई। अध्ययन के दस्तावेजों से पता चलता है कि जब इस अध्ययन के नतीजों को दिसम्बर 2017 में (एसएसी) की सातवीं बैठक में पेश किया गया तो सदस्यों ने अध्ययन में इतने जन्मजात विकृत ग्रस्त बच्चे पाए जाने पर हैरानी जताई और आंकड़ों की गुणवत्ता पर कई सवाल खड़े किए। इसके बाद तय किया गया कि एक एक्सपर्ट ग्रुप (विशेषज्ञ समूह) द्वारा आंकड़ों की समीक्षा की जाएगी। एक्सपर्ट गु्रप की 4 अपै्रल 2018 की बैठक के मिनिट्स के अनुसार गु्रप ने इसकी सिफारिस की कि यह आंकड़े अपने अंतरनिहित गड़बडिय़ों के कारण जनता के बीच इसे नहीं ले जाना चाहिए और किसी प्लेट फार्म पर इसे साझा नहीं किया जाना चाहिए।
मानसिक रूप से विकृत पैदा हो रहे बच्चे
वर्ष 1996 में किए गए एक अन्य शोध में 20 माताओं के दूध के सैम्पल लिए गए थे, जिनमें से 19 माताओं के दूध में पारा पाया गया था। ऐसे में यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यूनियन कार्बाइड कारखाने के आसपास का भूमिगत जल, पर्यावरण, पीने का पानी और भोजन आज भी दूषित बना हुआ है, जिसकी वहज से लोगों में तरह-तरह की बीमारियां पनप रही हैं। इन बस्तियों में रहने वाली माताओं की कोख से जन्म लेने वाले बच्चे जन्मजात शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग और विकृत पैदा हो रहे हैं।
…अब भरोसा उठ गया
भोपाल गैस पीडि़त महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा कि गैस पीडि़तों की अगली पीढ़ी पर गैस काण्ड के असर पर पड़ताल के इन दस्तावेजों से वैज्ञानिक और वैज्ञानिक संस्थाओं से भरोसा उठ गया है। अध्ययन की डिजाइन गड़बड़ थी तो उसे 2 साल तक वैज्ञानिक सलाहकारों की 3 बैठकों ने कैसे स्वीकृत कर दिया। इसके बाद से आज तक इस अध्ययन को सही तरीके से करने की कोई योजना क्यों नहीं बनाई गई।
बच्चों के लिए क्या किया
डाव कार्बाइड के खिलाफ बच्चे की नौशीन खान ने बताया, जन्मजात विकृतियों पर शोध के जो दस्तावेज हमें मिले हैं, उनमें कहीं इसका जिक्र नहीं है कि अध्ययन में जन्मजात विकृतियों के साथ पाए गए 110 बच्चों की मदद के लिए क्या किया गया। वर्ष 1994 /95 के दस्तावेज बताते है कि गैस पीडि़तों के 70,000 बच्चों की जांच की गई और उनमें 2435 बच्चों में दिल की जन्मजात विकृतियां पाई गई।
केस एक
छोला मंदिर चांदबड़ निवासी रजनी अब 18 वर्ष की हो चुकी हैं। ये जन्म से ही मानसिक मांधता की शिकार हैं। इनकी मां ने बताया कि इकलौती संतान हैं। चिंता सता रही है कि हम लोगोंं के बाद बेटी का क्या होगा।
केस दो
भानपुर निवासी ईशा अब 17 वर्ष की हो चुकी हैं। मां सन्नो बाई ने बताया कि पांच वर्ष की उम्र में पता चला कि बच्ची मानसिक तौर पर बीमार है। इनका पूरा परिवार गैस पीडि़त है। अब बेटी की चिंता सताने लगी है।
केस तीन
कोच फैक्ट्री रोड राजेन्द्र नगर निवासी अभि बाथम 13 वर्ष के हो चुके हैं। मां मोनिका ने बताया, बेटा एक साल का हुआ तो पता चला कि मानसिक तौर पर कुछ समस्या है। इनका पूरा परिवार गैस पीडि़त है।
गैस पीडि़तों का छलका दर्द
तीसरी पीढ़ी तक त्रासदी का असर जारी है। इनके उपचार की सरकारी व्यवस्था पर अब कोई ध्यान नहीं।
प्रभावित क्षेत्र की जलवायु-जल स्रोतों में जहरीले पदार्थ के बीच रहने को मजबूर हैं हजारों गैस पीडि़त।
पीडि़तों की सही संख्या का आंकड़ा नहीं। सरकार और पुलिस की चार्जशीट में मिले अलग-अलग आंकड़े।
दुर्घटना के बाद परिसर में 350 मीट्रिक टन जहरीला कचरा समेटकर एक जगह रखा गया है।
31 साल बाद भी गुनहगार सलाखों तक नहीं पहुंचे। कई आरोपी अपनी मौत मर चुके हैं।