मुजफ्फरपुर बालिका गृहकांड: ब्रजेश ठाकुर समेत 19 दोषियों को 19 महीने बाद सजा

मुजफ्फरपुर
बहुचर्चित बालिका गृह कांड में दिल्ली के साकेत स्थित विशेष पॉक्सो कोर्ट से दोषियों को मुकर्रर हुई कड़ी सजा ने पीड़िताओं की रुह को सुकून दी है। मंगलवार को मुजफ्फरपुर यही कहता रहा। बालिका गृह की काली कोठरी में लगभग तीन दर्जन से अधिक लड़कियों की जिंदगी स्याह करने वाले ब्रजेश ठाकुर समेत 19 दोषियों को न्यायालय ने19 महीने बाद ही सजा दे दी।  

सजा के बिंदु पर होने वाली सुनवाई को लेकर न सिर्फ मुजफ्फरपुर बल्कि पूरे बिहार व देश-दुनिया की नजरें दिल्ली की अदालत पर टिकी थी। मंगलवार को दोपहर बाद फैसला आते ही एक बार फिर बालिका गृह की शर्मनाक और दर्दनाक कहानी लोगों की जेहन में कौंधने लगी है। परत दर परत खुली इस शर्मनाक कहानी के पन्नों को लोग पलटते रहे। पहले पुलिस और फिर सीबीआई की जांच में कुल 20 आरोपित पकड़े गये थे। इनमें से एक को जमानत मिली, वहीं एक को बरी किया गया। एक चार्जशीटेड आरोपित डॉक्टर प्रोमिला अब भी सीबीआई की गिरफ्त से बाहर है। जो सलाखों के पीछे आये उनको उनकी काली करतूत के हिसाब से कोर्ट ने सजा दे दी।  

इससे पहले कांड की जांच में कई नाटकीय मोड़ आये, कई हिरासत में लिये गये। इनमें कुछ पूछताछ के बाद ही छूट गये तो कुछ और संगीन जुर्म के आरोप में घिरते चले गये। सरकार की एक मंत्री को पद गंवाना पड़ा। मुजफ्फरपुर की इस घटना से पटना से दिल्ली तक में सनसनी फैली रही। न सिर्फ विधान सभा बल्कि संसद तक में यह मामला गूंजा। सीबीआई जांच शुरू होने से पीड़ित किशोरियों को न्याय की उम्मीद बंधी। मुजफ्फरपुर विशेष पॉस्को कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केस दिल्ली के साकेत स्थित विशेष कोर्ट में ट्रांसफर होने पर आस और मजबूत हो गई थी।  

मुजफ्फरपुर में साहू रोड में डेढ़ साल पहले तक बालिका गृह चलता था। जहां समाज की मजबूर बच्चियां रहती थीं। फरवरी 2018 में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टिस) की संस्था 'कोशिश' ने बालिका गृह पर अपनी सोशल ऑडिट रिपोर्ट समाज कल्याण विभाग को सौंपी। टीम ने ऑडिट में पाया था कि बालिका गृह का रखरखाव सही नहीं है। बच्चियों के साथ दुर्व्यवहार व यौन उत्पीड़न की शिकायतें भी हैं।  मई 2018 को टिस की रिपोर्ट समाज कल्याण विभाग के निदेशक तक पहुंची। तब के जिला बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक दिवेश कुमार शर्मा को मामले में एफआईआर कराने का आदेश निदेशक ने दिया।  

समाज कल्याण विभाग के निदेशक के निर्देश पर 31 मई को साहू रोड स्थित सेवा संकल्प और विकास समिति के खिलाफ महिला थाने में एफआईआर करायी गई। इससे पूर्व कड़ी सुरक्षा में 46 बच्चियों को पटना, मधुबनी व मोकामा शिफ्ट कर दिया था। एफआईआर होने के बाद तत्कालीन एसएसपी हरप्रीत कौर ने केस की कमान खुद संभाली। इस दौरान पुलिस को टिस की रिपोर्ट के आलोक में कई महत्वपूर्ण साक्ष्य मिले। इसके आधार पर एसएसपी के आदेश पर सेवा संकल्प व विकास समिति के संरक्षक ब्रजेश ठाकुर व सात अन्य महिला कर्मियों को हिरासत में लिया गया। उनमें बालिका गृह की अधीक्षिका भी शामिल थी।  एफआईआर दर्ज होने के बाद बालिका गृह पहुंची मुजफ्फरपुर पुलिस की टीम अंदर की बनावट को देखकर चौंक गई। अंदर में बनीं एक से अधिक सीढ़ियां गड़बड़ी का संकेत दे रहीं थी। पुलिस के बाद महिला आयोग की टीम को पहुंची। यह टीम भी अंदर की अजीबोगरीब बनावट देखकर चौंक गई थी।  

26 जुलाई 2018 से पूर्व तत्कालीन सीआईओ रवि रौशन व सीडब्ल्यूसी मेंबर विकास को जेल भेज चुकी थी। जेल भेजने वालों की संख्या आठ से दस हो चुकी थी। केस की गंभीरता देख कई सफेदपोश के शामिल होने की चर्चा होने लगी। इस पर राज्य सरकार ने 26 जुलाई को इस केस को सीबीआई को देने की सिफारिश की थी। 29 जुलाई को सीबीआई ने पटना स्थित स्पेशल क्राइम ब्रांच में केस दर्ज की। इसके अलावा सेवा संकल्प व विकास समिति के अधीन चलने वाली एक और संस्था में गड़बड़ी का खुलासा हुआ। इसके बाद तत्कालीन बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक दिवेश कुमार शर्मा ने महिला थाने में 11 महिलाएं व चार बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। इसकी जांच अभी स्थानीय स्तर पर चल रही है।  

पीड़ित बच्चियों ने पुलिस को दिए बयान में कहा था बालिका गृह में उनके साथ गलत हुआ। बच्चियों ने यह भी बताया कि कुछेक की हत्या कर दी गई और परिसर में ही शव गाड़ दिया गया। इस आलोक में तत्कालीन एसएसपी हरप्रीत कौर ने परिसर की जेसीबी से खुदाई कराई। हांलांकि इससे जुड़े कोई साक्ष्य वहां नहीं मिले। इसके बाद सीबीआई की टीम ने बूढ़ी गंडक में तलाशी ली और सिकन्दरपुर श्मशान घाट की भी खुदाई करवाई।

 

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