नई दिल्ली
मुंबई मेट्रो के लिए आरे जंगल में कुछ पेड़ों की कटाई पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर का कहना है कि मजबूरी में पेड़ काटे जाते हैं तो उसकी भरपाई भी की जाती है। जावडेकर ने कहा कि यूं भी बॉम्बे हाई कोर्ट ने आरे को जंगल नहीं माना है। उन्होंने दिल्ली मेट्रो के पहले स्टेशन के निर्माण के वक्त इसी तरह के विरोध की याद दिलाते हुए कहा कि पेड़ सिर्फ काटे ही नहीं जाते हैं, लगाए भी जाते हैं। पर्यावरण मंत्री ने कहा, 'बॉम्बे हाई कोर्ट ने आदेश में कहा है कि यह जंगल नहीं है। पहला दिल्ली मेट्रो स्टेशन बनाने के लिए भी 20-25 पेड़ काटे जाने थे। लोगों ने तब भी विरोध किया था, लेकिन काटे गए हरेक पेड़ के बदले पांच पौधे लगाए गए थे।'
जावडेकर का कहना है कि विकास कार्यों के दौरान पर्यावरण के विरुद्ध कार्रवाई के मद्देनजर उचित कदम उठाए जाते हैं। उनके मुताबिक, विकास कार्यों के लिए पेड़ काटने की मजबूरी होती है तो इसका भी ध्यान रखा जाता है बदले में नए पौधे लगाए जाएं ताकि पर्यावरण संरक्षण की जरूरत भी पूरी होती रहे। उन्होंने दावा किया कि दिल्ली में सिर्फ मेट्रो के लिए ही काम नहीं हुआ, पेड़ों की तादाद भी बढ़ाई गई। उन्होंने कहा, 'दिल्ली में 271 मेट्रो स्टेशन बनाए गए हैं और पेड़ों की संख्या भी बढ़ी है। यह विकास के साथ प्रकृति का संरक्षण का नमूना है।'
दरअसल, जावड़ेकर यह बता रहे हैं कि जिस तरह दिल्ली मेट्रो के निर्माण के वक्त पेड़ काटने पड़े और काटे गए पेडों के अनुपात में कहीं ज्यादा पेड़ लगाए गए, उसी तरह मुंबई में भी काटे जा रहे पेड़ों की भरपाई की जाएगी। हालांकि, पर्यावरण कार्यकर्ताओं एवं अन्य विरोधियों की दलील है कि महाराष्ट्र सरकार ने पेड़ काटने में जल्दबाजी दिखाई जबकि बॉम्बे कोर्ट का फैसला आने के बाद याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए तैयार थे। इनका कहना है कि सरकार को कम-से-कम सोमवार तक इंतजार करना चाहिए था।