अध्यात्म

मांगने से चाहे कुछ भी मिल जाए, पर दिल का चैन कभी नहीं मिलता

सेवा के बदले कुछ मांगना नहीं है, श्री हरि की किरपा जब बरसती है, तो वो बरसती ही जाती है

भोपाल. हम मन्दिर में जाते हैं और परमात्मा से भौतिक सुख के लिए जाने अनजाने में क्या क्या मांगते हैं। जब प्रभू उसे देते हैं, तो वह मानसिक सुख शांति खो बैठता है और अंतत: उसे वही जीवन बोझ लगने लगता है।

प्रभु से रोज मांगता था धन-दौलत
एक गरीब आदमी था, जो हर रोज नजदीक के मंदिर में जाकर वहां साफ-सफाई करता और फिर अपने काम पर चला जाता था। अक्सर वो अपने प्रभू से कहता कि मुझे आशीर्वाद दीजिए, जिससे मेरे पास ढेर सारा धन-दौलत आ जाए।
एक दिन ठाकुर जी ने बाल रूप में प्रगट होकर उस आदमी से पूछ ही लिया कि क्या तुम मन्दिर में केवल इसीलिए काम करने आते हो।

उस आदमीने ने पूरी ईमानदारी से कहा हां, मेरा उद्देश्य तो यही है कि मेरे पास ढेर सारा धन आ जाए, इसीलिए तो आपके दर्शन करने आता हूं। पटरी पर सामान लगाकर बेचता हूं। पता नहीं, मेरे सुख के दिन कब आएंगे।

धन मिला तो मंदिर जाना छूट गया
बाल रूप ठाकुर जी ने कहा, तुम चिंता मत करो। जब तुम्हारे सामने अवसर आएगा, तब ऊपर वाला तुम्हें आवाज थोड़ी लगाएगा। बस, चुपचाप तुम्हारे सामने अवसर खोलता जाएगा। युवक चला गया। समय ने पलटा खाया और वह गरीब आदमी अधिक धन कमाने लगा। धीरे-धीरे धन कमाने में इतना व्यस्त हो गया, कि मंदिर में जाना ही छूट गया।

धन मिला पर दिल में चैन नहीं
कई वर्षों बाद वह एक दिन सुबह ही मंदिर पहुंचा और साफ-सफाई करने लगा।
इस दौरान ठाकुर जी फिर प्रगट हुए और उस व्यक्ति से बड़े ही आश्चर्य से पूछा, क्या बात है, इतने बरसों बाद आए हो। सुना है बहुत बड़े सेठ बन गए हो। इस पर वह व्यक्ति बोला, बहुत धन कमाया। अच्छे घरों में बच्चों की शादियां की, पैसे की कोई कमी नहीं है, पर दिल में चैन नहीं है। ऐसा लगता था, रोज सेवा करने आता रहूं पर आ ना सका।

बाद में पछताना पड़ता है
व्यक्ति बोला, हे प्रभू, आपने मुझे सब कुछ दिया पर जिंदगी का चैन नहीं दिया। इस पर प्रभू ने कहा कि तुमने वह मांगा ही कब था। जो तुमने मांगा वो तो तुम्हें मिल गया ना। फिर आज यहां क्या करने आए हो। इस पर उसकी आंखों में आंसू भर आए। ठाकुर जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला, अब कुछ मांगने के लिए सेवा नहीं करुंगा। बस दिल को शांति मिल जाए।

मांगने नहीं मन की शांति के लिए जाओ मंदिर
ठाकुर जी ने कहा, पहले तय कर लो कि, अब कुछ मांगने के लिए मंदिर की सेवा नहीं करोगे। बस मन की शांति के लिए ही आओगे। ठाकुर जी ने समझाया कि चाहे मांगने से कुछ भी मिल जाए ,पर दिल का चैन कभी नहीं मिलता। इसलिए सेवा के बदले कुछ मांगना नहीं है। वो व्यक्ति बड़ा ही उदास होकर ठाकुर जी को देखता रहा और बोला, मुझे कुछ नहीं चाहिए।

आप बस, मुझे सेवा करने दीजिए। सच में, मन की शांति सबसे अनमोल है। श्री हरि की किरपा जब बरसती है, तो वो बरसती ही जाती है। जब भी मैं बुरे हालातों से घबराता हूं, तब मेरे प्रभु जी कि आवाज़ आती है रुक, मैं आता हूं।

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