मुंबई
एल्गार परिषद केस (भीमा कोरेगांव) पर एनआईए ने संज्ञान लिया है. जांच एजेंसी ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार को बताया कि वह मामले की जांच करेगी. इसे लेकर एनआईए ने महाराष्ट्र के डीजी को पत्र भी लिखा है.
एनआईए ने शुक्रवार की दोपहर में राज्य सरकार को सूचित किया कि वे इस मामले को संभाल रहे हैं. इस मामले की जांच कई राज्यों में फैली हुई है. इससे पहले महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने जांच में शामिल पुलिस अधिकारियों की बैठक बुलाई थी ताकि जांच के विस्तार को समझा जा सके.
वहीं गृह मंत्री अनिल देशमुख ने भीमा कोरेगांव मामले को लेकर केंद्र सरकार की निंदा की है. उन्होंने ट्वीट करते हुआ कहा है कि जब हम मामले की जड़ तक पहुंचने की कोशिश कर रहे थे, तो बिना हमसे बात किए केंद्र सरकार ने यह मामला एनआईए को दे दिया, मैं इस कृत्य की निंदा करता हूं.
एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कुछ दिन पहले ही राज्य के गृह विभाग को पत्र लिखकर इस मामले की जांच एसआईटी से कराने की मांग की थी. उन्होंने उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भी जांच की मांग की, जिन्होंने इस मामले की जांच की थी. पत्र में यह भी कहा गया था एल्गर परिषद मामले में कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी गलत थी. इस मामले में 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया था.
क्या है भीमा कोरेगांव का मामला?
एक जनवरी 2018 को महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में जातिगत हिंसा भड़की थी. इस मामले में महाराष्ट्र पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार किया था. पुलिस ने सुरेंद्र, गाडलिंग, सुधीर धावले, महेश राउत, रोमा विल्सन और सोमा सेन को भी आरोपी बनाया था.
भीमा कोरेगांव हिंसा के दौरान महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और शिवसेना के गठबंधन वाली सरकार थी. हालांकि विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर सहमति नहीं बनने पर बीजेपी और शिवसेना अलग-अलग हो गए थे.
क्या है इतिहास?
बता दें कि एक जनवरी 1818 को ब्रिटिश आर्मी और पेशवा आर्मी के बीच जंग हुई थी, जिसमें ब्रिटिश आर्मी की जीत हुई थी. दरअसल, दलित जाति के 500 से अधिक सैनिकों ने तब पेशवाओं की सेना में शामिल होने का आग्रह किया था, लेकिन पेशवाओं ने उन्हें शामिल नहीं किया था. इसी के बाद दलित और महार जाति के जवान ब्रिटिश के साथ चले गए थे और पेशवाओं को इस जंग में मात दी थी. तभी से एक जनवरी के दिन भीमा कोरेगांव में जश्न मनाया जाता है.