मध्य प्रदेश

मन के भाव और जीवन के अनुभवों को अंकित करने का माध्यम है शिक्षा


शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय भेल के आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित ऑनलाइन शैक्षणिक व्याख्यान में वक्ताओं ने अपनी बात रखी

भोपाल. शिक्षा और जीवन का लक्ष्य एक है। शिक्षा, आगामी पीढिय़ों में मन के भाव और जीवन के अनुभवों को अंकित करने का माध्यम है। शिक्षा में व्यक्तित्व विकास के अवसर होने चाहिए। नई शिक्षा नीति में इसका समावेश है। यह बात मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी के संचालक अशोक कड़ेल ने मुख्य वक्ता के रूप मे कही।

शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय भेल के आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित ऑनलाइन शैक्षणिक व्याख्यान में वक्ताओं ने अपनी बात रखी। इस दौरान मुख्य वक्ता के रूप में मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी के संचालक अशोक कड़ेल रहे। उन्होंने कहा कि शिक्षा और जीवन का लक्ष्य एक है, हमें शिक्षा परिवार, समाज और शैक्षणिक संस्थाओं से मिलती है, जिसमें प्राध्यापकों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है।

कड़ेल ने कहा कि शैक्षणिक संस्थाएं जीवंत होना चाहिए, जहां पढ़ाई के साथ-साथ व्यक्तित्व विकास के अवसर भी मिले। नई पीढ़ी प्राचीन विद्वानों को जाने और महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा ले। स्वामी विवेकानंद ने मनुष्य के व्यक्तित्व विकास में उसके आत्मविश्वास, सकारात्मक विचार, सक्रियता, आत्मनिर्भरता, त्याग और सेवा-भावना की अहम भूमिका बताई। उन्होंने कहा कि पाश्चात्य व्यक्तित्व दिखावे पर तो भारतीय व्यक्तित्व चरित्र पर आधारित होता है।

मानव का अस्तित्व पंचकोश पर आधारित है। हमें सेवा और दान करने में अग्रणी रहना चाहिए। शिक्षा परिसर, कौशल विकास के केंद्र बने। प्रसन्नता कि बात यह है कि, नई शिक्षा नीति में इन सभी का समावेश है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शीघ्र ही नया वातावरण परिसरों में मिलेगा। इससे समाज और देश के लिए आदर्श नागरिक मिलेंगे।

इस मौके पर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. मथुरा प्रसाद ने कहा कि मनुष्य की शिक्षा उसके परिवार से शुरू होती है। यह समाज और साहित्य व्यक्तित्व विकास के अवसर प्रदान करती है। विश्व में भारत ही ऐसा देश है, जो विभिन्न धर्म, भाषाएं, संस्कृतियों को समेटे है, फिर भी एक है। प्रचार्य ने कहा कि विदेशी यहां बार-बार यही जानने के लिए आए कि विविधता में एकता कैसे है। आज इसी एकता ने हमें वैश्विक महामारी से सामना करने की शक्ति प्रदान की है।

विद्यार्थियों को हमारी संस्कृति बचाते हुए ज्ञान प्राप्ति और तकनीकी विकास में अग्रणी रहना चाहिए। कार्यक्रम के अंत में आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ के समन्वयक डॉ. संजय जैन ने अपनी बात रखी। आयोजन में महाविद्यालय के प्राध्यापकों के साथ छात्र-छात्राओं ने सहभागिता की।

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