प्रत्येक पूर्णिमा बुद्ध की किसी न किसी जीवन घटना को रेखांकित करती है
भोपाल. प्रत्येक पूर्णिमा बौद्धों के लिए विशेष महत्व का दिन होती है। चूंकि पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा पूर्णत्व को प्राप्त होता है, इसलिए पूर्णिमा आनंद दायक त्योहार के रूप में मनाई जाती है। प्रत्येक पूर्णिमा बुद्ध की किसी न किसी जीवन घटना को रेखांकित करती है।
1. ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन चक्रवर्ती राजा सम्राट अशोक महान ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को पांच भिक्षुओं के साथ बोधिवृक्ष की शाखा लेकर श्रीलंका भेजा था। इसी दिन वे वहां के राजा देवानाम प्रिय तिस्स से मिले और श्रीलंका के अनुराधपुर शहर में बोधिवृक्ष की एक शाखा लगाकर बुद्ध धम्म की शुरुआत की थी।
2. इस दिन भगवान बुद्ध ने तप्यसु और भल्लिक को अपना पहला उपासक बनाया था।
3. इसी दिन तथागत सम्यक सम्बुद्ध ने सुजाता को धम्मोपदेश दिया था।
इस प्रकार यह ज्येष्ठ पूर्णिमा बौद्धों के लिए पवित्र है और मंगलकारी है। वैसे हर पूर्णिमा के दिन उपासक उपासिकाओं द्वारा उपोसथ व्रत रखा जाता है व ध्यान साधना का अभ्यास किया जाता है। पूर्णिमा के दिन बौद्ध उपासक-उपासिकाओं को प्रात:काल उठकर स्नानादि कर बुद्ध प्रतिमा के सम्मुख मोमबत्ती, धूपबत्ती लगाकर फूल आदि से विधिवत पांच मिनट तक परिवार के सभी सदस्यों को मिलकर धम्म पूजा करनी चाहिए। पूर्णिमा के दिन अष्टशील व्रत का पालन करना चाहिए।
सुबह 7 बजे बुद्ध विहार में जाकर, भिक्खु के हाथों से अष्टशील धारण करना चाहिए और उसका 24 घंटे तक, दूसरे दिन सुबह 7 बजे तक पालन करना चाहिए। अष्टशील के दिन सफेद स्वच्छ वस्त्र ही पहनने चाहिए। उपोसथ व्रत के दिन सुबह नाश्ता 7-8 बजे तक करके दोपहर का भोजन 12 बजे तक ग्रहण कर लेना चाहिए। उपोसथ के दिन रात को कुछ भी नहीं खाना है।
रात के समय पूरी तरह उपवास करना है, क्योंकि पूर्णिमा की रात उपवास करने की और वंदना पूजा-पाठ-ध्यान भावना करने की विशेष रात मानी जाती है। पूर्णिमा की रात बड़ी पावन, मंगलमय, धम्म तरंगों से ओत-प्रोत मानी जाती है। उस रात्रि को उपवास रखकर सृष्टी की धम्म तरंगों में शरीर और मन को समाविष्ट करके सुख की पाप्ति होती है, इसलिए पूर्णिमा की रात को व्रत रखना चाहिए। प्रत्येक पूर्णिमा के दिन अपनी-अपनी सामर्थ के अनुसार कुछ न कुछ दान भी अवश्य करना चाहिए।