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बेफिक्र राम नगरी ने नहीं बदली अपनी चाल, अयोध्या पर अफवाहों का जाल

 
अयोध्या 

किसी भी बड़ी ख़बर के दिन, देश में न्यूज़ इंडस्ट्री के समानांतर एक और इंडस्ट्री जो बेहद चुस्त हो जाती है, वो है अफ़वाहबाज़ी की इंडस्ट्री. और कई दफे जब तक समाचार वाले मामले की तह तक पहुंच पाए, अफ़वाह वाले जनता को बरगलाने में कामयाब हो जाते हैं. अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के आख़िरी दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ.

अफ़वाहबाज़ी का बाजार गर्म
सुबह-सुबह ही ये ख़बरें फैलने लगीं कि सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने अयोध्या विवाद के मामले में भाईचारे की मिसाल क़ायम करते हुए, विवाद वाली 2.77 एकड़ ज़मीन पर दावा छोड़ दिया है. ये बात हैरान करने वाली थी क्योंकि मध्यस्थता पैनल की कई कोशिशों के बाद अदालत को उन्होंने यही बताया था कि समझौते की सारी क़वायद बेकार साबित हुई है. लेकिन अफवाहबाज़ों ने तो फ़ॉर्मूला तक पेश कर दिया था कि वक़्फ़ बोर्ड ने अयोध्या की जमीन छोड़ने के बदले में काशी, मथुरा का दावा छोड़ने की हिंदू पक्ष से मांग की है और ASI के क़ब्ज़े वाली मस्जिदों में नमाज़ पढ़ाए जाने की मंज़ूरी चाही है.

अयोध्या नगरी के घाट
हालांकि वक़्फ़ बोर्ड ने अदालत के सामने ऐसा कोई हलफ़नामा नहीं रखा. बल्कि ज़फ़रयाब जिलानी ने साफ़-साफ़ कह दिया कि सुनी वक़्फ़ बोर्ड की तरफ़ से समझौते की दिशा में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है. मध्यस्थता पैनल की तरफ़ से ज़रूर अदालत में एक रिपोर्ट रखी गई. अफ़वाह गैंग ने फिर ये कह कर बात को संभालने की कोशिश की कि वक़्फ़ बोर्ड का वो फॉर्मूला मध्यस्थों को ही सुझाया गया था.

अयोध्या में सरगर्मी बढ़ी
मगर इन अफ़वाहों ने अयोध्या में दोनों ख़ेमों में गरमागरमी बढ़ा दी. राम जन्मभूमि पर मंदिर देखने की चाह रखने वालों ने एक दूसरे को बधाइयां तक देना शुरू कर दिया और मुस्लिम पक्ष से जुड़े लोगों के फ़ोन घनघनाने लगे, कहीं इक़बाल अंसारी ने तो समझौते की हामी नहीं भर दी, कहीं हाजी महबूब तो हां नहीं कर आए.

अयोध्या में सरयू नदी
राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे स्वामी करपात्री, जो अपने तल्ख़ तेवरों के लिए जाने जाते हैं, वो कहते हैं कि राम मंदिर के लिए जितने लोगों ने शहादत दी है, उनकी आत्मा को सही मायनों में मुक्ति मिलने का समय अब आ गया है. बीजेपी से जुड़ी सुबुही ख़ान, ट्रिपल तलाक़ के बाद अब राम मंदिर के मामले में भी, मुसलमानों के भीतर एक राय क़ायम करने में लगी हुई हैं.

सुबुही का कहना है कि अगर अयोध्या विवाद का फ़ैसला अदालत से हुआ, तो इस देश के मुसलमानों के माथे हमेशा के लिए ये दाग लगा रह जाएगा कि उन्होंने अपने हिंदू भाइयों के आराध्य श्री राम के लिए भी जगह नहीं छोड़ी. जवाब में जामिया में बायोकेमिस्ट्री पढ़ा रहे शोएब जमाई कहते हैं कि दाग़ तो बीजेपी और हिंदू संगठनों के माथे लगा है, संविधान की हत्या और अयोध्या के ढांचे को गिराने का.

परवान चढ़ीं आम लोगों की उम्मीदें
पर अयोध्या की खूबसूरती यही है कि ऐसे तर्कों-कुतर्कों, अफ़वाहों और बयानबाजियों के बीच भी वो अपना स्वभाव नहीं बदलती. सरयू के घाटों पर जम कर साफ़-सफ़ाई चालू है. राम की पैड़ी पर युद्ध स्तर पर निर्माण का काम चल रहा है. दिवाली जो आ रही है.

साल का एक ही तो ऐसा मौक़ा होता है, जिसमें हर आदमी आलस छोड़ कर घर की साफ़ सफ़ाई में जुट जाता है. फिर अयोध्या तो राम की नगरी है. राम का 134 साल का वनवास ख़त्म होने की उम्मीद के साथ ही, आम लोगों की उम्मीदें भी परवान चढ़ने लगी हैं. शायद राम मंदिर के फ़ैसले के साथ उनके शहर की भी क़िस्मत बदल जाए!

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