देखी सुनी

बेटी की शादी के अपने-अपने तरीके

वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर की वाल से

भोपाल. कंपनी के चेयरमैन की बेटी की शादी थी। सारा स्टाफ काम करने के लिए मुस्तैद था। अफसर ने उनके बीच काम बांटा। आखिर में बोला, ‘क्योंकि मैं चेयरमैन हूं, इसलिए कुर्सियों से जुड़ी व्यवस्था मैं ही देखूंगा।’ यह शहर की शादी थी। देहात में यह आयोजन जिन्होंने देखा हो, वे जानते हैं कि विशेषकर बेटी की शादी में पिता कैसे चकरघिन्नी बना यहां से वहां घूमता रहता है।

फिलहाल ऐसा ही फर्क कापोर्रेट कल्चर वाले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और ठेठ देहाती पृष्ठभूमि को अब तक सहेजे हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच भी दिख रहा है। शिवराज इंदौर और आगर-मालवा सहित सागर का चक्कर काट आये हैं। यहां विधानसभा के उपचुनाव होने हैं। उनके खास सिपहसालार नरोत्तम मिश्रा गंगा नहाने जाने से पहले ग्वालियर जाकर चम्बल का पानी चख चुके हैं।

अब मुख्यमंत्री ग्वालियर-चम्बल सहित ही उन सभी जगहों पर जाने का कार्यक्रम तय कर रहे हैं, जहां की चौबीस विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने लोकसभा चुनाव के मतदान की प्रक्रिया पूरी होने के बाद मार्के की बात कही थी। मीडिया से बोले थे, ‘हमने तो शादी के बाद बेटी विदा कर दी है।’ ये उपचुनाव भी शिवराज तथा कमलनाथ के लिए बेटी की शादी से कम महत्वपूर्ण मामला नहीं है।

दोनों ही महानुभाव जहां बाराती यानी मतदाता को लुभाए रखने में कसर नहीं छोडऩा चाहेंगे, वहीं उनका प्रयास घरातियों की भाव-भंगामिओं को भी संतुष्ट रखने वाला होगा। एक भी मोर्चे पर चूके तो सारा किया-धारा मिट्टी में मिल सकता है। तो शिवराज कर यह रहे हैं कि प्रदेश में चुनाव वाली हर जगह पहुंचकर पार्टी की संभावनाओं को मजबूती देने की कोशिश में जुटे हुए हैं।

मतदाता को बता रहे हैं कि क्यों उसे भाजपा को वोट देना चाहिए। इससे भी बड़ी चुनौती के अंतर्गत वे पार्टीजनों को यह समझाने की कोशिश में जुटे हुए हैं कि बदले परिदृश्य में वे बदले की भावना को भूलकर किस तरह एकजुट हो जाएं। कैसे वे ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं उनके समर्थक विधायकों से अपनी अदावत को बीती ताही बिसार दें की तर्ज पर भुलाकर यह मान लें कि अब ये दोस्ती का नया युग है। उस सौहार्द की जरूरत है, जिसके चलते ही राज्य में यह संभव हुआ कि कांग्रेस की सरकार को अपदस्थ कर भाजपा का शासन फिर स्थापित कर दिया गया। निश्चित ही कई जगह भाजपाई आहत हैं।

वे इस बात को पचा नहीं पा रहे कि कल तक पार्टी के आदेश पर ही वे जिन लोगों के लिए खंदक खोदने में जुटे थे, कैसे उनके ही लिए रेड कारपेट बिछाने में लग जाएं। हालांकि ऐसा करना समय की मांग है और इस समय शिवराज ऐसा होने के लिए ही इधर से उधर घूमने की शुरुआत कर चुके हैं।

उनके इन प्रयासों की सराहना इसलिए भी बनती है कि इसके जरिए वे वह काम भी करने में खुद को झोंक चुके हैं, जो मूलत: भाजपा के प्रदेश संगठन को करना चाहिए था। यूं भी, बीते करीब चौदह साल में शिवराज की जो कार्यशैली दिखी है, वह इस बात की पुख्ता तरीके से पुष्टि करती है कि वह पद से इतर अपनी अघोषित जिम्मेदारियों को भी पूरा करने से हिचकते नहीं हैं।

इधर चेयरमैन मार्का पार्टी कांग्रेस के हाल विचित्र दिखते हैं। नाथ तो लगता है कि अपने 15 महीने के ‘चलो-चलो, आगे बढ़ो’ वाले आखिरकार थोथे साबित हुए अहंकार से अब भी बाहर नहीं निकल सके हैं। वह उपचुनाव की चुनौतियों को भी इसी तरह हांकने की कोशिश करते दिखते हैं। केवल चुनिंदा कुछ बड़े नेताओं से संवाद। कार्यकतार्ओं से पहले ही की तरह दूरी। अहम मसलों पर मुंह में दही जमा लेने वाला भाव।

इस सब पर तुर्रा यह कि जनाब खुद या उनके हरकारे सूखी हवा जैसा यह दावा करने से नहीं चूक रहे हैं कि सभी सीटों पर उपचुनाव तो उनकी पार्टी ही जीतेगी। दिल बहलाने को गालिब ये खयाल अच्छा है, लेकिन यह अंतत: कांग्रेसियों के दिल को एक बार फिर डुबाने का ही प्रसंग साबित होगा। चौधरी राकेश सिंह के समर्थक और विरोधी पार्टी के भीतर ही ‘चम्बल की कसम’ जैसे उग्र तेवर दिखा रहे हैं। प्रेमचंद गुड्डू को लेकर ‘पग-पग रोटी, डग-डग नीर’ की जगह आलोट में ‘पग-पग खुटका, डग-डग पीर’ वाले हालात बन चुके हैं।

लेकिन चेयरमैन साहेब हैं कि न खुद की कुर्सी की चिंता कर रहे हैं और न ही उन चौबीस सीटों की तरफ गंभीरता से ध्यान दे पा रहे हैं, जिनके जरिये राज्य की सियासत का नया अध्याय लिखने के लिए भाजपा पूरी ताकत से मैदान में आ गयी है। बेटी की विशुद्ध शहरी और खालिस देहाती परिवेश वाली शादी के ये अपने-अपने दृश्य हैं, जिनके परिणाम भी एक-दूसरे से पूरी तरह अलग-अलग ही होंगे। विवाह की रस्म को शुद्ध भाषा में पाणिग्रहण भी कहा जाता है। अब देखना यह है कि ऐसी तैयारियों के बीच मतदाता किस दल को सफलता का पानी ग्रहण करवाता है और किसका पानी वह उतार देता है।

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