– लेखक : विजय जोशी, पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल
परहित बस जिनके मन माहीं, तीन काहू जग दुर्लभ कुछ नाहीं
हम में से हर एक जिसका धरा पर आगमन हुआ है, उसका प्रस्थान भी पूर्व सुनिश्चित है। बीच के जीवनकाल का ध्येय है, अपनी प्रतिभा को निखारते हुए स्वयं का सर्वश्रेष्ठ समाज को समर्पित करना। इसीलिए भारतीय दर्शन में धरती से प्रस्थान को मोक्ष का मार्ग या निर्वाण कहा गया है। इसके साथ ही समय पूर्व अकाल मृत्यु को सबके लिए खास तौर पर अभिभावकों के लिए जीवन का सबसे बड़ा दुख भी कहा गया है।
2015 में मंदर की केरवा जलाशय में डूबने से हुई थी मौत
मंदार वेदघोषे एक ऐसा मासूम स्कूली छात्र था, जिसे वर्ष 2015 में व्यवस्था की संवेदनहीनता एवं लापरवाही की बलिवेदी पर केरवा जलाशय में अपने प्राणों की आहुति का दंश झेलना पड़ा। इस दुर्घटना ने मात्र परिवार ही नहीं अपितु पूरे भोपाल को झकझोर दिया था। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि-
विश्व भर में रोजाना पानी में डूबकर इतने लोगों की होती है मौत
– सम्पूर्ण संसार में प्रतिदिन 40 व्यक्तियों की मौत पानी में डूब जाने से होती है।
– इनमें से 60 प्रतिश होते हैं 30 वर्ष की आयु के अंदर के बालक
– 90 प्रतिशत दुर्घटनाएं निम्न तथा मध्यमवर्गीय श्रेणी के परिवारों से होती हैं, जिनमें भारत प्रमुख है।
– उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार अकेले भारत में वर्ष 2015 में लगभग 30,000 जिनमें मुख्यत: बालक थे, पानी में डूब जाने के कारण काल कवलित हुए।
इस भयावक सत्य के प्रति न सरकार जागरूक है न समाज
कुल मिलाकर इस भयावह तथ्य तथा सत्य के प्रति न तो सरकार जागरुक है और न समाज। कुछ दिनों की मीडिया हलचल के बाद सारी व्यवस्था कुंभकर्णी निद्रा को समर्पित हो जाती हैं। ऐसी विकट एवं विकराल मानव जनित त्रासदी से सामना करने का प्रण लिया मंदार के परिवार ने “मंदार एंड नो मोर” संगठन बनाकर, ताकि बालकों, अभिभावकों, समाज, सरकार सबको आंदोलित किया जा सके।
उनके अब तक के भागीरथ प्रयास यूं फलीभूत हुए
– केरवा जलाशय के ढलान भरे ताल को पत्थरों से भरकर समतलीकरण
– पानी के खतरनाक स्तर पर पहुंचने के पूर्व निकासी मार्ग का निर्माण
– वन क्षेत्र में सुचारू संवाद सहायता के लिए भारत संचार निगम की सहायता से मंदार टावर की स्थापना
– यही उपक्रम इंदौर के निकट स्थित पातालपानी पर भी स्थापित किए गए
– स्कूली बच्चों, अभिभावकों की जागरुकता के लिए जन जागरण, व्याख्यान, वर्कशाप इत्यादि का आयोजन
– इसे देशव्यापी सकारात्मक आंदोलन बनाने की पहल, जिसके अंतर्गत हर वर्ष 5 अक्टूबर (मंदार का जन्मदिन एवं अमेरिका का डू समथिंग नाईस डे यानी कुछ अच्छा करो) दिवस को भारत का “राष्ट्रीय जल दुर्घटना रोकथाम दिवस” (ड्राउनिंग प्रिवेंशन डे) मनाने के लिए भारत सरकार से निवेदन किया गया।
संभावित मौतों के विरुद्ध युद्ध को बनााया जीवन का मिशन
बात का संदर्भ और सारांश मात्र इतना है कि विश्वास घूषे परिवार ने आजीवन दुख ढोने की परंपरा का परित्याग करते हुए भविष्य में डूबने से संभावित मौतों के विरुद्ध युद्ध को अपना मिशन बनाते हुए शेष जीवन एकला चलो की तर्ज पर समर्पित कर दिया है।
खुद के खर्च पर करते हैं काम
चंदे के धंधे से सर्वथा परे रहते हुए, आज तक न तो शासन और न किसी अन्य संस्थान से एक पैसे का भी अनुदान लिया। स्वार्थ और मौकापरस्ती के तहत एनजीओ स्थापना के इस दौर में यह तथ्य निश्चित ही विचित्र किन्तु सत्य की श्रेणी में गिना जाएगा।
लोग जुड़ते गए कारवां बनता गया
सुखद बात तो यह है कि इस पावन अभियान से अब लोग स्वत: जुड़ते जा रहे हैं और इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत में होने जा रहा है। निर्मल मन से संपादित किया जा रहा यह प्रयास न केवल प्रशंसनीय है, अपितु सर्वथा अद्भुत एवं हम सबके लिए अनुकरणीय भी है। आइये इस पवित्र अनुष्ठान से जुड़कर हम भी अपना जीवन सार्थक करें।
दो दिन की है जिंदगी और बहुत हैं काम, परहित में जीवन कटे तो ही मिले आराम