रायपुर
पाटन क्षेत्र में नैसर्गिक कोसा उत्पादन की असीम संभावनाएं हैं। पाटन क्षेत्र में अर्जुना वृक्षों की संख्या लगभग 4 लाख 36 हजार है। इन बड़े-बड़े अर्जुना वृ़क्षों में कोसा पालन करने के बजाय नैसर्गिक रूप से कोसा उत्पादन के लिए अनुकूल हैं। पाटन क्षेत्र में ग्रामोद्योग विभाग के अंतर्गत कोसा संग्रहण एवं कोसा वस्त्र निर्माण से लोगांे को अतिरिक्त रोजगार प्राप्त होता है। भारत के कोसा उत्पादन में छत्तीसगढ़ का दूसरा स्थान हैं। इन कोसा फलों से 300 करोड़ रूपए के कोसा वस्त्र प्रतिवर्ष बनाये जाते हैं। एक कोसा कृमि को प्रारंभ से लेकर कोसा बनाते तक 300 ग्राम अर्जुन पत्ती की आहार के रूप में आवश्यकता होती है। पाटन क्षेत्र के समस्त अर्जुना वृक्षों से लगभग 05 करोड़ नग कोसा उत्पादन की संभावना है।
छत्तीसगढ़ के कोसा वस्त्रों की मांग देश के साथ विदेशों में भी है। विभाग से मिली जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ ग्रामोद्योग विभाग के संचालक श्री सुधाकर खलको ने अपने पाटन प्रवास के दौरान बताया कि पाटन क्षेत्र में विशेष ध्यान देकर नैसर्गिक कोसा उत्पादन को बढ़ाने के लिए कार्ययोजना पर कार्यवाही प्रगति पर है।
श्री खलको ने बताया कि छत्तीसगढ़ में दो प्रकार का कोसा उत्पादन होता है। पहला अण्ड़े लेकर कृषक वनखंडों पर कीड़ा पालन कर कोसा उत्पादन करते हैं जो साजा, अर्जुना आदि के पौधों पर होते हैं। इन कोसा फलों को विभाग द्वारा शासकीय समर्थन मूल्य पर क्रय कर बुनकरों को वस्त्र बनाने हेतु प्रदान किया जाता है। कोसा का दूसरा प्रकार नैसर्गिक कोसा का उत्पादन होता है। ये कोसा के कृमि खाद्य-वृक्षों जैसे- बस्तर में साल, अन्य क्षेत्रों में साजा, अर्जुना, सेन्हा आदि वृक्षों पर मानव अवरोध के बिना पत्ती खाकर कोसा बनाते हैं। नैसर्गिक कोसा का मूल्य अपेक्षाकृत अधिक होता है क्योंकि उनमें धागा अधिक होता है एवं धागे की निरंतरता बनी रहती है। अतः विभाग दोनों प्रकार के कोसा उत्पादन को बढ़ा रहा है।
उन्होंने अपने पाटन क्षेत्र के प्रवास के दौरान कई ग्रामों एवं खेतों के अर्जुना वृक्षों पर छोड़े गये कोसा कृमियों को देखा। उनमें से कई कृमि कोसा बना रहे थे एवं शेष कृमि वृक्षों में अर्जुन की पत्तियां खाकर परिपक्व हो रहे थे। उन्होंने क्षेत्र के पंचायत प्रतिनिधियों एवं ग्रामीणों से भी मुलाकात की। ग्रामीणों ने कहा कि समस्त अर्जुना वृक्षों का दोहन किया जावें, ताकि क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा कोसा उत्पादन एवं संग्रहण हो सके। श्री खलको ने उन्हें आश्वस्त किया कि हम प्राथमिकता के आधार पर पाटन क्षेत्र में यह काम कर रहे हैं। यदि ग्रामीण महिलाएं उन कोसा फलों से धागा निकालने का काम घर में करना चाहे तो हम उन्हें धागा निकालने की मशीन भी प्रदान करेंगे।
श्री खलको ने जानकारी दी कि विभाग द्वारा 10 कैम्पों के माध्यम से लगभग एक लाख अर्जुना वृक्षों में 02 करोड़ 75 लाख कोसा के कृमि अब तक छोड़े जा चुके हैं जो वृक्षों में छोटी अवस्था से लेकर कोसा बनाने तक की अवस्था में हैं। इसी प्रकार रायपुर जिले में 01 करोड़ 57 लाख, महासमुंद में 01 करोड़ 99 लाख, बालोद में 43 लाख 54 हजार, बलौदाबाजार में 96 लाख 23 हजार एवं धमतरी जिले में 32 लाख कोसा कृमि अर्जुना वृक्षों पर छोड़े गये हैं। विभाग के अधिकारियों से चर्चा एवं विभिन्न ग्रामों के प्रक्षेत्र निरीक्षण से इस वर्ष विपुल मात्रा में कोसा उत्पादन एवं संग्रहण की संभावनाएं है। निश्चित तौर पर इन कोसा फलों से चांपा, रायगढ़ एवं कोरबा में वस्त्र निर्माण में आशातीत वृध्दि होगी एवं कोसा वस्त्रों का पूर्व वर्षांे की तुलना में अधिक निर्यात होगा।
उन्होंने यह भी बताया कि विभाग के माध्यम से ग्राम स्तरीय कार्ययोजना बनाकर अधिकतम लक्ष्य रखा जायेगा जिससे कोसा संग्रहण का काम, बुनकरों एवं शिल्पियों के द्वारा कच्चा उत्पाद अधिकतम करवाकर उसकी मूल्याभिवृध्दि कर अधिकतम रोजगार देना है।