ब्रसल्ज
भारत ने हाल ही में यूएनएचआरसी में पाकिस्तान से कहा था कि उसे हमपर मानवाधिकार के आरोप लगाने की जगह अपने दामन में लगे दाग को देखना चाहिए, इस्लामाबाद ने भले ही अपने यहां अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रहे अत्याचार पर आंखें मूंद ली हों, लेकिन लगता है उसके दामन के दाग यूरोपीय देशों ने जरूर देख लिए हैं। तभी यूरोप इंडिया चैम्बर ऑफ कॉमर्स (ईआईसीसी) ने यूरोपीयन कमिशन के ईयू कमिश्नर फॉर ट्रेड को चिट्ठी लिखकर मांग की है कि पाकिस्तान को दिए गए जनरलाइज्ड सिस्टम प्रीफेंस (जीएसपी) प्लस स्टेट्स वापस ले लिया जाए। पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान के खिलाफ अगर यह कार्रवाई की जाती है तो उसकी कमर और टूट जाएगी, क्योंकि जीएसपी के तहत यूरोपीय संघ के बाजारों में आयात शुल्क नहीं लगाया जाता है।
भारत और यूरोपीय संघ के बीच व्यापार को बढ़ावा देने वाले इस संगठन ने यह मांग पाकिस्तान में हिंदुओं, सिखों और ईसाइयों की हत्या को देखते हुए की है। ईआईसीसी ने कमिश्नर के नाम चिट्ठी में लिखा, 'हम इसे गर्व से लेते हैं कि यूरोपी संघ का मौलिक मूल्य मानवाधिकार, आजादी, लोकतंत्र, समानता और कानून के नियमों का आदर करना है। और यह यूरोपीय संघ की संधि से बंधा हुआ है, यूरीपीय संघ और इसके सदस्य देशों ने दूसरे देशों के साथ अपने संबंध को बढ़ावा देने के उद्देश्य के तहत मानवाधिकाकर का सम्मान करने और उसे बढ़ावा देने का संकल्प लिया है।'
आर्टिकल 370 का मुद्दा उठाकर यूएनएचआरसी में भारत को मानवाधिकार पर घेरने की कोशिश कर रहे पाकिस्तान के लिए यह बड़ा झटका है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति किसी से छुपी नहीं है और अब एक बड़े मंच पर उसके खिलाफ कार्रवाई की मांग तेज हो गई है।
चिट्ठी में यूरोपी संसद की कार्यवाही हवाला देते हुए लिखा गया है, ' ब्रसल्स में 9 सितंबर को यूरोपीय संसद में मानवाधिकार पर आधारित सब-कमिटी की बैठक में सदस्यों ने पाकिस्तान को दिए जा रहे जीएसपी का मुद्दा उठाया था। इसमें पाकिस्तान को जीएसपी प्लस का दर्जा दिए जाने के औचित्य पर सवाल उठाया गया था। जब यूरोपीय संसद ने हाल के दिनों में पाकिस्तान में मानवाधिकार की स्थिति को लेकर 3 प्रस्ताव पारित किए थे, तब पाकिस्तान को यह दर्जा देने की क्या नैतिक बाध्यता है? वहीं, एक सदस्य ने सिख लड़की के अपहरण और जबरन धर्मांतरण के बादी शादी कराए जाने का भी मामला उठाया था।'
श्रीलंका का हवाला देकर पाकिस्तान से दर्जा वापस लेने की मांग करते हुए ईआईसीसी ने कहा, 'पहले भी मानवाधिकार का उल्लंघन करने पर व्यापार के विशेषाधिकार कुछ देशों से वापस ले लिए गए हैं,जैसे कि श्रीलंका। ईयू ने उन सामानों का आयात भी प्रतिबंधित किया था जिसके बनाने में मानवाधिकार का उल्लंघन होता हो।'