रायपुर
अपैक्स बैंक के पूर्व चेयरमैन व भाजपा में सहकारिता नेता अशोक बजाज ने सहकारी समितियों को भंग करने पर आपत्ति की है। उन्होंने कहा कि निर्वाचित बोर्ड को भंग करने का अधिकार सहकारिता विभाग को नहीं है।
श्री बजाज ने एक पीसी में सोमवार को कहा कि सहकारिता विभाग ने पुनर्गठन स्कीम और पुनर्गठित समितियों की सूची एक साथ जारी की है। उन्होंने कहा कि बिना स्कीम के पुनर्गठन कर लिया और स्कीम के साथ जारी किया गया। जबकि होना यह चाहिए कि पहले स्कीम तैयार किया जाना था फिर पुनर्गठन की प्रक्रिया अपनाया जाना था।
श्री बजाज ने कहा कि छत्तीसगढ़ सहकारी सोसायटी अधिनियम की धारा 16 (ग) में राज्य सरकार को लोकहित में पुनर्गठन योजना बनाने की शक्ति प्रदान की गई है। जो सूची जारी की गई है, उसमें लोकहित परिलक्षित नहीं होता है। पुनर्गठन के पूर्व सहकारी समिति के बोर्ड अथवा सहकारी समिति के कृषक सदस्यों से कोई रायशुमारी नहीं की गई। दावा आपत्ति की मियाद खत्म होने के पूर्व ही पुनर्गठन को अंतिम मानकर समितियों के संचालक मंडल को भंग कर प्राधिकृत अधिकारी नियुक्त किए जा रहे हैं।
बजाज ने यह भी कहा कि धारा 16 (ग) में निर्वाचित बोर्ड को भंग करने का कोई प्रावधान नहीं है। वैसे भी निर्वाचित बोर्ड को अकारण भंग नहीं किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि पुनर्गठन से समितियों का दायरा प्रभावित हो रहा है। दायरा परिवर्तन से अगर बोर्ड प्रभावित नहीं हो रहा है, तो उसे भंग करना न्यायोचित नहीं है।
श्री बजाज ने समितियों का निर्वाचन सहकारी चुनाव आयोग द्वारा लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अंतर्गत हुआ है। संविधान के 97वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 243 (य) (2) में समितियों का कार्यकाल पांच वर्ष करने का प्रावधान है। यह संशोधन यूपीए सरकार के कार्यकाल में हुआ था, जो वर्ष-2012 से प्रभावशील है। ऐसे में विधि द्वारा स्थापित व्यवस्था के अंतर्गत क्रियाशील बोर्ड को उपसचिव स्तर के अफसर के आदेश से भंग नहीं किया जा सकता।