मध्य प्रदेश

नागरिक आपूर्ति निगम डूबा तीस हजार करोड़ के कर्जे में, 10000 करोड़ केन्द्र सरकार से लेना बाकी

भोपाल
कभी प्रदेश के नवरत्न निगमों में शुमार नागरिक आपूर्ति निगम इस समय तीस हजार करोड़ के कर्जे में डूबा हुआ है। इसमें दस हजार करोड़ तो केन्द्र सरकार से ही लेना बाकी है। हालत यह है कि लगभग हर दिन साढ़े छह करोड़ रुपए का ब्याज निगम को कर्ज पर चुकाना पड़ रहा है। निगम द्वारा खरीदा गया लगभग 73 लाख मीट्रिक टन विभिन्न भंडार गृह निगमों में रखा हुआ है। केन्द्र के कम उठाव के कारण यह स्थिति बन गई है।

सूत्रों के मुताबिक वर्ष 17-18 का डेढ़ लाख टन गेहूं, वर्ष 18-19 का सात लाख टन गेहूं और वर्ष 19-20 का 55 लाख मीट्रिक टन गेहूं तथ लगभग सात लाख मीट्रिक टन चावल प्रदेश के विभिन्न भंडारगृहों में पड़ा हुआ है। इस गेहूं-चावल के भंडारण, परिवहन और इसकी खरीदी के लिए लिए गए कर्ज पर निगम को हर दिन मोटा ब्याज चुकाना पड़ रहा है।

केन्द्र सरकार द्वारा मध्यप्रदेश में समर्थन मूल्य पर खरीदे गए अनाज का उठाव काफी धीमा है। भारतीय खाद्य निगम हर साल जो ओपन मार्केट सेल स्कीम के तहत हर साल निजी कंपनियों को अनाज बेचता है उसमें निजी कंपनियां इस बार रुचि नहीं दिखा रही है। पिछल्ले साल इसी अवधि तक बीस लाख मीट्रिक टन गेहूं बिस्किट, आंटा और मैदा निर्माण करने वाली कंपनियों ने उठाया था वहीं इस बार यह उठाव मात्र दस हजार मीट्रिक टन पर सिमट गया है।  पिछले साल इस योजना में गेहूं की दर 2160 रुपए क्विंटल थी इस बार यह दर 2190 रुपए क्विंटल है। कंपनियां इसे ज्यादा बताते हुए खरीदी करने आगे नहीं आ रहीं है।  पहले कभी दो सौ करोड़ रुपए जमा राशि रखने वाला नागरिक आपूर्ति निगम पिछली सरकारों के कार्यकाल में अकुशल प्रबंधन की वजह से तीस हजार करोड़ के कर्जे में आ गया है।

निगम में लेखा के विशेषज्ञ केके श्रीवास्तव को यहां उपार्जन और निगम के व्यवसाय के कामों का प्रभारी बना रखा है। लेखा का काम देखने के लिए बाहर से पांच लोगों को रख रखा है। हालत यह है कि दो साल के निगम के लेखा तैयाार नहीं हो पाए है। समय पर महंगे ब्याज वाले कर्जे चुकाकर सस्ते ब्याज वाले कर्ज का प्रबंधन नहीं किए जाने के कारण निगम का कर्ज लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

 निगम गेहूं, धान के अलावा  नाफेड के लिए चना, मसूर, सरसों, तिल, रामतिल की भी खरीदी करता है। इस खरीदी का भुगतान भी समय पर नहीं होता है। वहीं प्रदेश में समर्थन मूल्य पर गेहूंकी जरुरत से ज्यादा खरीदी होती है। चावल की खपत भी ज्यादा नहीं है। केन्द्र सरकार ज्यादा खरीदे गए गेहूं को लेने से हाथ खीच लेता है। यह स्टॉक यहां जमा होता रहता है। उसकी खरीदी, परिवहन, भंडारण पर निगम को काफी राशि खर्च करना पड़ता है।

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