नई दिल्ली
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर शनिवार सुबह 10.30 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आना है. अयोध्या में यह विवाद सदियों से चला आ रहा था. अब इस विवाद का खात्मा होने वाला है. वैसे तो हाईकोर्ट को दर्जनों वाद बिंदुओं पर फैसला देना है लेकिन यहां एक महत्वपूर्ण मुद्दा ये भी है कि यह दुनिया का एक अनोखा केस है जिसमें कोर्ट के सामने फरियादी खुद भगवान हैं.
इस वजह से हुआ था बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन
आपको बता दें कि 1986 में एक स्थानीय वकील और पत्रकार उमेश चंद्र पांडेय की अपील पर फैजाबाद के तत्कालीन जिला जज कृष्णमोहन पांडेय ने 1 फरवरी 1986 को विवादित परिसर का ताला खोलने का आदेश पारित कर दिया. इस आदेश का बहुत विरोध हुआ मुस्लिम पैरोकारों ने इसे एकतरफा फैसला बताया था. इसी की प्रतिक्रिया स्वरूप फरवरी, 1986 में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन हुआ और मुस्लिम समुदाय ने भी विश्व हिंदू परिषद की तरह आंदोलन और संघर्ष का रास्ता अपनाया.
1 जुलाई 1989 में कहा गया राम इस संपत्ति के मालिक
1989 के आम चुनाव से पहले विश्व हिंदू परिषद के एक नेता और रिटायर्ड जज देवकी नंदन अग्रवाल ने 1 जुलाई को भगवान राम के मित्र के रूप में पांचवां दावा फैजाबाद की अदालत में दायर किया. इस दावे में स्वीकार किया गया था कि 23 दिसंबर 1949 को राम चबूतरे की मूर्तियां मस्जिद के अंदर रखी गईं. दावा किया गया कि जन्म स्थान और भगवान राम दोनों पूज्य हैं और वही इस संपत्ति के मालिक भी हैं.
बाबर का किया गया था उल्लेख
आपको बता दें कि इस मुकदमे में मुख्य तौर पर इस बात का उल्लेख किया गया था कि बाबर ने एक पुराना राम मंदिर तोड़कर वहां एक मस्जिद बनवाई थी . दावे के समर्थन में अनेक इतिहासकारों, सरकारी गजेटियर्स और पुरातात्विक साक्ष्यों का हवाला भी दिया गया था.
इसी मुकदमे में हुई थी विशाल मंदिर की बात
इसी मुकदमे में पहली बार कहा गया था कि राम जन्म भूमि न्यास इस स्थान पर एक विशाल मंदिर बनाना चाहता है. इस दावे में राम जन्म भूमि न्यास को भी प्रतिवादी बनाया गया था. अशोक सिंघल इस न्यास के मुख्य पदाधिकारी थे. इस तरह पहली बार विश्व हिंदू परिषद भी परोक्ष रूप से पक्षकार बना.