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दर्शकों के दिलों में आज भी बसी है चॉकलेटी-लवर बॉय की छवि

ऋषि कपूर का युवाओं के लिए संदेश, मेहनत कीजिए सफलता मिलेगी

ऋषि कपूर भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन लोगों के जहन में उनके द्वारा छोड़ी गई छाप अमिट है। भला वर्षों से लोगों के दिलों पर राज करने वाले उस बालकलाकार से यूवाओं को प्रेम का पाठ पढ़ाने वाले जिंदा दिल इंसान को कैसे भुलाया जा सकता है। क्या बच्चे, क्या नौजवान, सत्तर और अस्सी के दशक में सभी ऋषि कपूर के खुल्लम खुल्ला प्यार करने के अंदाज के दीवाने थे।

साठ के दशक में उनके चाचा शम्मी कपूर ने याहू.. चाहे कोई मुझे जंगली कहे (जंगली) का शोर मचाते हुए प्रेम में बगावत के जो स्वर बुलंद किए थे, ऋषि कपूर ने उसी की जमीन पर रूमानी नायक की इमेज को विकसित किया, जो दर्शकों को लुभाती थी, गुदगुदाती थी और सपनों की ऐसी दुनिया में ले जाती थी, जहां फूल ही फूल नजर आते थे।

वर्ष 1970 में बाल कलाकार के तौर पर ऋषि कपूर ने बनाई पहचान
हिन्दी सिनेमा में ऋषि कपूर का उदय ऐसे समय हुआ, जब लोग पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना की अदाओं पर रीझे हुए थे और उनकी फिल्में एक के बाद एक हिट हो रही थीं। अपने पिता राज कपूर की मेरा नाम जोकर (1970) में ऋषि कपूर बाल कलाकार के तौर पर लोगों में पहचान बना चुके थे, लेकिन नायक के तौर पर उनकी पहली फिल्म बॉबी (1973) ने तो तहलका ही मचा दिया। राज कपूर के निर्देशन में बनी इस फिल्म ने ऋषि कपूर के सितारे रातों-रात बुलंद कर दिए। इससे पहले की फिल्मों में नायक परिपक्व हुआ करते थे और प्रेम में उनके लिए कुछ मर्यादाएं हुआ करती थीं।

हम तुम इक कमरे में बंद हो के साथ किया प्रेम
किशोर वय प्रेम वाली पहली हिन्दुस्तानी फिल्म बॉबी में ऋषि कपूर इन मर्यादाओं से बाहर निकले और हम तुम इक कमरे में बंद हो के साथ उन्होंने खुल्लम खुल्ला प्रेम के जो तार छेड़े, उनकी झनझनाहट फिल्म-दर-फिल्म बढ़ती चली गई। कहा जाता है कि बरगद के तले कोई और पेड़-पौधा ज्यादा नहीं पनप पाता। ऋषि कपूर ने इसे झुठला दिया।

दादा पृथ्वी राज कपूर और पिता राज कपूर के साथ-साथ चाचा शम्मी कपूर और शशि कपूर भी बरगद के समान थे। इन सबसे अलग ऋषि कपूर ने अभिनय में अपनी अलग पहचान कायम की। फिल्मों की तरह निजी जिंदगी में भी उन्होंने खुल्लम खुल्ला नीतू सिंह से प्रेम किया, खुल्लम खुल्ला शादी की और पूरी जिंदगी खुल्लम खुल्ला बसर की। उनके देहांत से दुनिया ने एक जिंदादिल इंसान खो दिया है।

150 से अधिक फिल्मों में किया काम
अभिनेता ऋषि कपूर का 67 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। गुरुवार को उन्होंने एनएच. रिलायंस अस्पताल में अंतिम सांस ली। उन्हें 2018 में कैंसर हो गया था। परिवार में पत्नी नीतू, बेटा रणबीर कपूर और बेटी रिद्धिमा हैं। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता ने 150 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया। 4 सितंबर, 1952 को मुंबई में जन्में ऋषि कपूर को अभिनय की कला विरासत में मिली।

आपका अंदाज ही आपकी स्टाइल
ऋषि नेे कहा था-स्टाइल का मतलब सिर्फ कपड़ों से नहीं माना जाता। आपका अंदाज ही आपकी स्टाइल है। आप कैसे बात करते हैं, कैसे चलते हैं, खुद को कैसे प्रजेंट करते हैं, वह स्टाइल होती है। मेरे पिता राज कपूर रहे हों या फिर दिलीप कुमार या देव आनंद, इन सबका एक अंदाज था और यही दूसरों के लिए स्टाइल बन गई। ऋषि कपूर का जो अंदाज है, वह किसी और का नहीं हो सकता।

चल कहीं दूर निकल जाए
ऋषि कपूर के साथ सोने में सुहागा यह रहा कि उस दौर के कई सदाबहार गाने उनके हिस्से में आए। इन गानों की फेहरिस्त खासी लम्बी है। इनमें से कुछ प्रमुख हैं- मैं शायर तो नहीं (बॉबी), चल कहीं दूर निकल जाएं (दूसरा आदमी), शिरडी वाले सांई बाबा (अमर अकबर एंथॉनी), हम तो चले परदेस हम परदेसी हो गए (सरगम), हमने तुमको देखा तुमने हमको देखा (खेल-खेल में), तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती (कभी-कभी), दर्दे-दिल दर्दे-जिगर (कर्ज), तुमको मेरे दिल ने पुकारा है (रफूचक्कर), मेरी किस्मत में तू नहीं शायद (प्रेम रोग), चेहरा है या चांद खिला है (सागर), ओ हंसिनी (जहरीला इंसान), होगा तुमसे प्यारा कौन (जमाने को दिखाना है), बचना ए हसीनों लो मैं आ गया (हम किसी से कम नहीं), रंग भरे बादल से (चांदनी), मैं देर करता नहीं (हिना)।

मेयो कॉलेज में पढ़े थे ऋषि कपूर
दिवंगत फिल्म अभिनेता ऋषि कपूर चिंटू के उपनाम से पहचाने जाते थे। ऋषि कपूर ने अजमेर के मेयो कॉलेज में कुछ महीनों तक पढ़ाई की थी। ऋषि कपूर 1962-63 में मेयो में भी पढ़े थे। लेखक इंदरराज मल्होत्रा के कहने पर उनके पिता राज कपूर ने यहां दाखिला कराया था। वे कॉल्विन हाउस के छात्र थे, लेकिन छह महीने में तबियत खराब होने पर वापस लौट गए। बाद में भी वे कॉलेज से जुड़े रहे। ऋषि कपूर वर्ष 2006-07 में फिल्म नमस्ते लंदन की शूटिंग के दौरान भी अजमेर गए थे। इस दौरान उनके साथ फिल्म निर्देशक विपुल शाह और अभिनेत्री कैटरीना कैफ भी साथ आई थीं।

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