अध्यात्म

छत्रपति सम्भाजी महाराज ने अपने जीवन में 140 युद्ध लड़े जिनमें एक में भी हार नहीं हुई

शम्भाजी बहुत बड़े विद्वान् और धर्मशास्त्रों के ज्ञाता थे। उन्होंने 14 वर्ष की उम्र में ही संस्कृत में कई ग्रन्थ लिख दिये थे

भोपाल. संभाजी शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र थे। संभाजी का जन्म 14 मई 1657 में हुआ था। माता का देहांत उनकी अल्प आयु में ही हो गया। उनका पालन पोषण दादी जीजाबाई ने किया। 16 जनवरी सन 1681 ई. को संभाजी महाराज का विधिवत राज्याभिषेक हुआ और वो हिंदवी स्वराज्य के दूसरे छत्रपति बने। शम्भाजी बहुत बड़े विद्वान् और धर्मशास्त्रों के ज्ञाता थे। उन्होंने 14 वर्ष की उम्र में ही संस्कृत में कई ग्रन्थ लिख दिये थे।

विदेशी पुर्तगालियों को हमेशा उनकी औकात में रखने वाले सम्भाजी को धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बन गए हिन्दुओं का शुद्धिकरण कर उन्हें फिर से स्वधर्म में शामिल करने वाले, एक ऐसे राजा जिन्होंने एक स्वतंत्र विभाग की ही स्थापना इस उद्देश्य के लिए की थी।

छत्रपति सम्भाजी महाराज ने अपने जीवन में 140 युद्ध लड़े जिनमें एक में भी उनकी हार नही हुई, लेकिन आखिर में धोखे से उन्हें पकड़ कर मुगलों द्वारा कैद कर लिया गया। औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए अनेकों भयंकर अमानवीय यातनाएं दी। उनकी जुबान काट ली गई और आंखे निकाल ली, लेकिन उन्होंने सनातन हिन्दू धर्म छोड़कर इस्लाम स्वीकार नहीं किया।

क्रोधित औरंगजेब ने अपने सामने ही इंसानों की खाल उतारने में प्रवीण जल्लादों को बुलाया और सम्भाजी की नख से शिख तक खाल उतरवा दी। उस दृश्य को देखने वाले प्रत्यक्षदर्शी मुगल सरदारों के हवाले से इतिहासकारों ने लिखा है कि खाल उतर जाने के बाद औरंगजेब ने उन्हें आसान मौत देने का प्रस्ताव यह कहते हुए दिया कि वह इस हालत में इस्लाम कबूल कर लें तो उन्हें आसान मौत दे दी जाएगी, लेकिन सम्भाजी ने फिर एक बार उसे ठुकरा दिया।

इसके बाद उनके खाल उतरे शरीर को रोजाना सुबह नीबूरस में नमक और मिर्च मिलाकर नहलाया जाता था। सम्भाजी की पीड़ा को शब्द देने वाले एक इतिहासकार के अनुसार पहले दो दिन सम्भाजी तथा कलश स्नान के वक्त खूब चीखते थे, लेकिन तीसरे दिन से उन्होंने पीड़ा पर काबू पा लिया। औरंगजेब को जब यह जानकारी मिली तो वह आगबबूला हो गया और उसने एक हाथ कटवा दिया, फिर भी सम्भाजी ने उफ नहीं की तो उनका पैर काट दिया गया, आखिरकार करीब पन्द्रह दिन तक नीबूरस में मिले नमक मिर्च के स्नान के बाद सम्भाजी ने 11 मार्च 1689 को कैद में ही दम तोड़ दिया।

मराठा इतिहासकारों के अलावा यूरोपियन इतिहासकार डेनिस किनकैड़ ने भी अपने लेखन में इस प्रकरण की पुष्टि की है। इतनी भयंकर यातनाओं के बावजूद अपने धर्म पर टिके रहने और इस्लाम के बदले मृत्यु का वरण करने के कारण उन्हें धर्मवीर भी कहा गया है।

औरंगजेब को लगता था कि छत्रपति संभाजी के समाप्त होने के पश्चात् हिन्दू साम्राज्य भी समाप्त हो जाएगा या जब सम्भाजी मुसलमान हो जाएगा तो सारा का सारा हिन्दू मुसलमान हो जाएगा, लेकिन वह नहीं जानता था कि वह वीर पिता का धर्म वीर पुत्र विधर्मी होना स्वीकार न कर मौत को गले लगाएगा। वह नहीं जानता था कि सम्भाजी किस मिट्टी के बने हुए हैं।

सम्भाजी मुगलों के लिए रक्त बीज साबित हुए। सम्भाजी की मौत ने मराठों को जागृत कर दिया और सारे मराठा एक साथ आकर लडऩे लगे। यहीं से शुरू हुआ एक नया संघर्ष, जिसमें इस जघन्य हत्याकांड का प्रतिशोध लेने के लिए हर मराठा सेनानी बन गया और अंत में मुग़ल साम्राज्य कि नींव हिल ही गयी और हिन्दुओं के एक शक्तिशाली साम्राज्य का उदय हुआ।

औरंगजेब दक्षिण क्षेत्र में मराठा हिंदवी स्वराज्य को खत्म करने आया था, लेकिन शिवाजी महाराज और शम्भाजी महाराज की रणनीति और बलिदान के कारण उसका ये सपना मिट्टी में मिल गया और उसको दक्षिण के क्षेत्र में ही दफन होना पड़ा। आज का इतिहास सच में सिर्फ महाराष्ट्र में रहने वाले मराठों के बीच में ही सीमित रह गया।

ऐसा मुझे इअलिए कहना पड़ा की मराठों को छोड़कर बाकी लोगों को ये भी नहीं मालूम की धर्मवीर छत्रपति संभाजी राजे कौन थे। (धर्मवीर छत्रपति संभाजी राजे भोसले) या शम्भाजी (1657-1689) मराठा सम्राट और छत्रपति शिवाजी के उत्तराधिकारी। उस समय मराठाओं के सबसे प्रबल शत्रु मुगल बादशाह औरंगजेब बीजापुर और गोलकुण्डा का शासन हिन्दुस्तान से समाप्त करने में उनकी प्रमुख भूमिका रही।

सम्भाजी अपनी शौर्यता के लिए काफी प्रसिद्ध थे। सम्भाजी ने अपने कम समय के शासन काल में 140 युद्ध किए और इसमें एक प्रमुख बात ये थी कि उनकी सेना एक भी युद्ध में पराभूत नहीं हुई। इस तरह का पराक्रम करने वाले वह शायद एकमात्र योद्धा होंगे। उनके पराक्रम की वजह से परेशान होकर दिल्ली के बादशाह औरंगजेब ने कसम खायी थी के जब तक छत्रपती संभाजी पकड़े नहीं जाएंगे, वो अपना किमोंश सर पर नहीं चढ़ाएगा।

इनको मुसलमान बनाने के लिए औरंगजेब ने कई कोशिशें की, किन्तु धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज और कवि कलश ने धर्म परिवर्तन से इनकार कर दिया। औरंगजेब ने दोनों की जुबान कटवा दी, आंखें निकाल दी, किन्तु शेर छत्रपति शिवाजी महाराज के इस सुपुत्र ने अंत तक धर्म का साथ नहीं छोड़ा। उस समय 11 मार्च 1689 को हिन्दू नववर्ष का दिन था, जब औरंगजेब ने दोनों के शरीर के टुकड़े कर के हत्या कर दी। किन्तु ऐसा कहते हंै कि हत्या पूर्व औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज से कहा कि मेरे 4 पुत्रों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता तो सारा हिन्दुस्थान कब का मुग़ल सल्तनत में समाया होता।

जब छत्रपति संभाजी महाराज के टुकड़े तुलापुर की नदी में फेंके गए तो उस किनारे पर रहने वाले लोगों को इकट्ठा करके सिला के जोड़ दिए (इन लोगों को आज शिवले इस नाम से जाना जाता है) जिस के उपरांत उनका विधि पूर्वक अंत्यसंस्कार किया। औरंगजेब ने सोचा था की मराठी साम्राज्य छत्रपति संभाजी महाराज के मृत्यु के बाद ख़त्म हो जाएगा। छत्रपति संभाजी महाराज की हत्या की वजह से सारे मराठा एक साथ आकर लडऩे लगे। अत: औरंगजेब को दक्खन में ही प्राण त्याग करना पड़ा।

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