रायपुर
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने कहा कि हिंसक एवं अराजक विचारधारा के लिए देश में कोई स्थान नहीं है। उन्होंने कहा कि हम समाज में साम्प्रदायिक सदभाव और समरसता बनाए रखेंगे और समाजिक बुराईयों से मिलकर लड़ेंगे। मुख्यमंत्री श्री बघेल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर आहुत छत्तीसगढ़ की विधानसभा के दो दिवसीय विशेष सत्र के समापन के अवसर पर संबोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा प्रस्तुत संकल्प को विधानसभा में ध्वनिमत से पारित किया गया कि छत्तीसगढ़ सरकार महात्मा गांधी के जन सेवा के रास्ते पर चलेगी। राज्य सरकार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के रास्ते पर चल कर, समाज के कमजोर वर्गो, अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों, महिलाओं, किसानों, मजदूरों और व्यापारियों सहित सभी वर्गों के हित में काम करेगी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर कृतज्ञ राष्ट्र की तरह यह सदन उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
मुख्यमंत्री ने विधानसभा के दो दिवसीय विशेष सत्र के समापन पर सदन में कहा कि महात्मा गांधी का राष्ट्रवाद देश को एकता के सूत्र में बांधने का काम करता है। एक राष्ट्रवाद देश के बाहर से आया है, जो विरोधियों को मिटाने की बात करता है। यह राष्ट्रवाद हिन्दुस्तान के लिए बहुत खतरनाक है। हमें इसके विरूद्ध लड़ाई लड?ी पडेगी। उन्होंने कहा कि गांधी जी ने आजादी की लड़ाई के साथ अस्पृश्यता के खिलाफ और नारी शिक्षा के लिए भी लड़ाई लड़ी। अंग्रेज उन्हें बार-बार जेल में डाल देते थे, फिर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। गांधी जी जीवों के प्रति दया का भाव रखते थे, और विरोधियों के प्रति कभी वैमनस्य का भाव नहीं रखा। गांधी जी स्वदेशी के समर्थक थे। राज्य सरकार गांधी जी के स्वदेशी और स्वावलंबन के विचारों को आगे बढ़ाने के लिए स्कूलों में सूती वस्त्रों से बने गणवेश वितरित कर रही है। स्कूलों में वर्ष 2020-21 के लिए बच्चों का गणवेश तैयार करने का काम 80 प्रतिशत पूरा हो गया है। बुनकर समितियों को बुनाई के लिए 42 करोड़ रूपए और धागे की आपूर्ति के लिए 30 करोड़ रूपए स्वीकृत किए गए हैं।
उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के छत्तीसगढ़ आगमन के 100 वर्ष पूरे होने पर राज्य में आने वाला वर्ष 2020 राष्ट्रपिता महात्मा गांधी वर्ष के रूप में मनाया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि महात्मा गांधी हमेशा असहमति का सम्मान करते थे। उनके विचारों से जो सहमत नहीं होता था, वे उनकी भी बात सुनते थे। उन्होंने हमेशा अपने विरोधी विचाराधारा वाले लोगों से भी बातचीत की। आजादी की लड़ाई में बहुत से नेता गांधी जी की विचाराधारा से सहमत नहीं थे। सुभाष चंद्र बोस ने तो असहमति के बावजूद उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया था। आज हम और आप इस सदन में है, तो गांधी जी की लोकतांत्रिक विचारधारा के कारण ही हैं।