अध्यात्म

घणी गई थोड़ी रही, या में पल-पल जाय, एक पलक के कारणे, यूं ना कलंक लगाय

22 मार्च से जो संयम बरता, परेशानियां झेली ऐसा न हो कि अंतिम क्षण में एक छोटी सी भूल, हमारी लापरवाही, हमारे साथ पूरे समाज-गांव-शहर-राज्य को न ले बैठे

एक राजा को राज करते काफी समय हो गया था। बाल भी सफ़ेद होने लगे थे। एक दिन राजा ने अपने दरबार में उत्सव रखा और अपने मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमंत्रित किया और अपने गुरुदेव को भी बुलाया। उत्सव को रोचक बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध नर्तकी को भी बुलाया गया।

तबले वाले को जगाने नर्तकी ने पढ़ा दोहा
राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्राएं अपने गुरुजी को भी दी, ताकि नर्तकी के अच्छे गीत व नृत्य पर वे भी उसे पुरस्कृत कर सकें। सारी रात नृत्य चलता रहा, ब्रह्म मुहूर्त की बेला आई, नर्तकी ने देखा कि मेरा तबले वाला ऊंघ रहा है और तबले वाले को सावधान करना ज़रूरी है, वरना राजा का क्या भरोसा दंड दे दे। ऐसे में उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा –

घणी गई थोड़ी रही, या में पल-पल जाय।
एक पलक के कारणे, यूं ना कलंक लगाय।

देखें लोगों ने कैसे-कैसे निकाले अर्थ
अब इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अपने अनुरूप अर्थ निकाला।
तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा। जब यह दोहा गुरुजी ने सुना तो उन्होंने सारी मोहरें उस नर्तकी को अर्पण कर दी। दोहा सुनते ही राजकुमारी ने भी अपना नौलखा हार नर्तकी को भेंट कर दिया।

युवराज ने नर्तकी को दिया अपना मुकुट
दोहा सुनते ही राजा के युवराज ने भी अपना मुकुट उतारकर नर्तकी को समर्पित कर दिया। राजा बहुत ही अचंभित हो गया। सोचने लगा रात भर से नृत्य चल रहा है, पर यह क्या!अचानक एक दोहे से सब अपनी मूल्यवान वस्तु बहुत ही ख़ुश होकर नर्तकी को समर्पित कर रहें हैं।

गुरुजी ने कहा दोहे ने मेरी आंखें खोल दी
राजा सिंहासन से उठा और नर्तकी को बोला एक दोहे द्वारा एक सामान्य नर्तकी होकर तुमने सबको लूट लिया। जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में आंसू आ गए और गुरुजी कहने लगे- राजा इसको नीच नर्तकी मत कह, ये अब मेरी गुरु बन गयी है, क्योंकि इसके दोहे ने मेरी आंखें खोल दी हैं। दोहे से यह कह रही है कि मैं सारी उम्र जंगलों में भक्ति करता रहा और आखिरी समय में नर्तकी का मुजऱा देखकर अपनी साधना नष्ट करने यहां चला आया हूं, भाई! मैं तो चला। यह कहकर गुरुजी तो अपना कमंडल उठाकर जंगल की ओर चल पड़े।

आज रात मैं भागने वाली थी, दोहे ने रोक लिया
राजा की लड़की ने कहा- पिता जी! मैं जवान हो गयी हूं। आप आंखें बंद किए बैठे हैं, मेरा विवाह नहीं कर रहे थे। आज रात मैं आपके महावत के साथ भागकर अपना जीवन बर्बाद करने वाली थी। लेकिन इस नर्तकी के दोहे ने मुझे सुमति दी, कि जल्दबाज़ी न कर, हो सकता है तेरा विवाह कल हो जाए, क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर तुली है।

युवराज ने कहा आज रात मैं आपकी हत्या करने वाला था
युवराज ने कहा- महाराज! आप वृद्ध हो चले हैं, फिर भी मुझे राज नहीं दे रहे थे। मैं आज रात ही आपके सिपाहियों से मिलकर आपको मारने वाला था, लेकिन इस दोहे ने समझाया कि पगले!आज नहीं तो कल आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक अपने सिर पर लेता है! थोड़ा धैर्य रख।

इन सब की बातों को सुनकर राजा को भी आत्म ज्ञान प्राप्त हुआ
जब ये सब बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी आत्म ज्ञान हो गया। राजा के मन में वैराग्य आ गया। राजा ने तुरंत फैसला लिया- क्यों न मैं अभी युवराज का राजतिलक कर दूं। फिर क्या था, उसी समय राजा ने युवराज का राजतिलक किया और अपनी पुत्री को कहा- पुत्री!दरबार में एक से एक राजकुमार आए हुए हैं, तुम अपनी इच्छा से किसी भी राजकुमार के गले में वरमाला डालकर पति रूप में चुन सकती हो। राजकुमारी ने ऐसा ही किया और राजा सब त्याग कर जंगल में गुरु की शरण में चला गया।

नर्तकी भी अपना नृत्य छोड़कर वैराग्य को चल पड़ी
यह सब देखकर नर्तकी ने सोचा- मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, लेकिन मैं क्यूं नहीं सुधर पायी? उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य आ गया। उसने उसी समय निर्णय लिया कि आज से मैं अपना नृत्य बंद करती हूं, हे प्रभु!मेरे पापों से मुझे क्षमा करना। बस, आज से मैं सिर्फ तेरा नाम सुमिरन करूंगी। लॉकडाउन भी काफ़ी निकल चुका है, बस! थोड़ा ही बचा है।

इस कोरोना काल में हम सबको भी धैर्य रखना चाहिए
आज हम इस दोहे को कोरोना को लेकर अपनी समीक्षा करके देखें तो हमने पिछले 22 मार्च से जो संयम बरता, परेशानियां झेली ऐसा न हो कि अंतिम क्षण में एक छोटी सी भूल, हमारी लापरवाही, हमारे साथ पूरे समाज/गांव/शहर/राज्य को न ले बैठे। आओ हम सब मिलकर कोरोना से संघर्ष करें। किसी भी समस्या से डरें नहीं डटकर मुकाबला करें आपके हौसलों से बड़ा दूसरा कोई नहीं।

घणी गई थोड़ी रही, या में पल पल जाय।
एक पलक रे कारणे, यूं ना कलंक लगाय।

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