गुजरात के कलाकर क्यों वापस कर रहे रत्नाकर पुरस्कार?

अहमदाबाद
गुजरात इन दिनों फिर चर्चा में है. इस बार चर्चा की वजह है प्रदेश के कलाकारों का रत्नाकर पुरस्कार लौटाना. अब सवाल यह भी उठ रहा है कि प्रदेश के कलाकार आखिर पुरस्कार लौटा क्यों रहे हैं? कलाकारों की नाराजगी के पीछे राम कथा वाचक गृहस्थ संत मोरारी बापू के बयान पर शुरू हुए घमासान के दौरान स्वामीनारायण संप्रदाय के संत द्वारा की गई टिप्पणी वजह है.

विवाद की शुरुआत मोरारी बापू के उस बयान से हुई थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि शिव ही नीलकंठ हैं. ऐसे ही कोई नीलकंठ नहीं हो जाता. मोरारी बापू के बयान पर स्वामीनारायण संप्रदाय ने आपत्ति जताई थी. स्वामीनारायण संप्रदाय भगवान नीलकंठ वर्णी को मानता है. कलाकार मोरारी बापू के समर्थन में आ गए. इससे खफा स्वामीनारायण संप्रदाय के विवेक स्वामी ने कलाकारों को लेकर विवादास्पद टिप्पणी कर दी.

स्वामी ने कहा कि कलाकार मंच पर शराब का सेवन कर शो करते हैं. कलाकार स्वामी की इसी टिप्पणी से आहत बताए जाते हैं. इस बयान से नाराज कलाकारों ने स्वामीनारायण संप्रदाय द्वारा दिए गए रत्नाकर पुरस्कार लौटाने की घोषणा कर दी है. साईंराम दवे, जिग्नेश कविराज और ओस्मान मीर ने अपने रत्नाकर पुरस्कार लौटाने की घोषणा की है.

साईंराम दवे ने कहा कि मोरारी बापू की एक टिप्पणी को लेकर जो विवाद पैदा हुआ, उससे कला जगत आहत है. एक संत ने कहा कि दारू पीकर आने वाले कलाकार भी बात कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह मंच हमारे लिए बहुत सम्मानजनक है, सरस्वती की गोद है और हम मंच की महिमा को बनाए रखने की लगातार कोशिश करते रहे हैं. दवे ने कहा कि मुझे स्वामीनारायण संप्रदाय से रत्नाकर पुरस्कार मिला था. उन्होंने पुरस्कार लौटाने की घोषणा की.

जिग्नेश कविराज ने कहा कि कुछ दिनों पहले, विवेक स्वामी ने अपने एक वीडियो में कलाकार को अपमानित किया था, उसे परेशान करने वाली बात कही थी. फिर दूसरे वीडियो में उन्होंने माफी मांगी. कलाकार को रत्नाकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उन्होंने कहा कि सम्मान और अपमान एक साथ नहीं हो सकता है. कविराज ने कहा कि मैं विवेक स्वामी के अविवेक से दुखी हूं.

ओस्मान मीर ने कहा कि कलाकारों के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया गया, वह बहुत दुखद है. मोरारी बापू सर्व धर्म सम भाव की बात करते हैं और हमारे लिए भी यही है. एक कलाकार के रूप में मुझे इस बात का गहरा दुःख है. उन्होंने कहा कि स्वामीनारायण संप्रदाय के संत जिन्हें हम पूज्य मानते हैं, उन्होंने कलाकारों और बापू के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग किया है तो रत्नाकर पुरस्कार जो मुझे गुजरात के एक कलाकार के रूप में मिला, मैं हाथ जोड़कर विवेकपूर्वक वंदन करके वापस लौटाता हूं.

गौरतलब है कि मायाभाई आहीर, बिहारी हेमु गढ़वी, अनुभा गढ़वी और लोकगायक हेमंत चौहान भी रत्नाकर पुरस्कार वापस लौटा चुके हैं.

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