खेल

खजाना मिला खाली तो अपने खर्च पर ट्रायल दें तीरंदाज

नई दिल्ली
लंबे समय से प्रतिबंध की मार झेलने के  बाद केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की अगुवाई में फिर से खड़ी हुई भारतीय तीरंदाजी संघ (एएआई) को विरासत में खाली खजाना मिला है। एएआई के खजाने में फूटी कौड़ी नहीं है, जिसके चलते फेडरेशन ने विश्व कप की टीम के चयन के लिए तीरंदाजों को अपने खर्च पर ट्रायल में उतरने को कहा है।

अमूमन ओलंपिक पदक के दावेदार खेल संघ के खजाने में पैसा और प्रायोजक दोनों रहते हैं, लेकिन मुंडा की अगुवाई वाले तीरंदाजी संघ के पास फूटी कौड़ी नहीं है। जिस वक्त अस्थाई समिति तीरंदाजी संघ का काम देख रही थी उस दौरान भी यह मुद्दा उठा था कि संघ के खजाने में कोई पैसा नहीं है बल्कि उस पर देनदारी चढ़ी है। संघ के एक पदाधिकारी का कहना है कि पुराने पदाधिकारियों से तकरीबन 60 लाख रुपये के एकाउंट का हिसाब-किताब होना बाकी है। इस वक्त संघ के पास कोई प्रायोजक भी नहीं है जिससे पैसा जुटाया जा सके।

पैसा नहीं होने के चलते फेडरेशन ने 29 फरवरी से से दो मार्च तक सोनीपत में दो विश्व कप के लिए कंपाउंड तीरंदाजों की और 11 से 13 फरवरी तक जूनियर एशियाई चैंपियनशिप के लिए रीकर्व तीरंदाजों की टीम चयनित करने के लिए सोनीपत में ट्रायल बुलाए हैं।

तीरंदाजी संघ की ओर से लिखे गए पत्र में कहा गया है कि ट्रायल में खेलने के लिए उन्हें अपने रहने-खाने का खुद इंतजाम करना होगा। उन्हें सिर्फ ट्रायल के लिए मैदान उपलब्ध कराया जाएगा। हालांकि पहले तीरंदाजी संघ की ओर से इस तरह के ट्रायल के लिए तीरंदाजों को रहने-खाने का खर्च दिया जाता था।
 
यह पहला मौका नहीं है जब तीरंदाजों को अपने खर्च पर ट्रायल के लिए बुलाया गया है। इससे पहले अस्थाई समिति ने ओलंपिक ट्रायल के लिए तीरंदाजों को एएसआई पुणे में अपने खर्च पर ट्रायल के लिए बुलाया था। हालांकि बाद में खेल मंत्री किरन रिजीजू ने इस आदेश को रद्द कर सारा खर्च उठाने की घोषणा की थी।

एएआई पर जलगे प्रतिबंध को वल्र्ड आर्चरी ने तो हटा दिया है, लेकिन यह प्रतिबंध अब तक खेल मंत्रालय की ओर से नहीं हटाया गया है। मंत्रालय ने संघ पर स्पोट्र्स कोड का पालन नहीं करने पर प्रतिबंध लगा रखा है।

हालांकि नए संघ ने स्पोट्र्स कोड का पालन करने के लिए मंत्रालय को लिख दिया है, लेकिन इसकी अभी समीक्षा की जा रही है। मंत्रालय से प्रतिबंधित होने के चलते भी नए संघ को पैसा जुटाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

 

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