नई दिल्ली
इकॉनमिक सर्वे कई बार बजट का फोकस बता जाते हैं. 2020 के सर्वे में आर्थिक सुस्ती और विकास की धीमी रफ्तार का जिक्र है तो निदान की तरफ संकेत भी है. सर्वे के मुताबिक इकॉनमी की चाल बढ़ाने के लिए स्पेंडिंग का बूस्टर डोज देने की ज़रूरत है. यानी अगर ऐसे उपाय किए जाएं जिससे आम आदमी भी खर्च करने निकले. इस लिहाज से निगाहें निर्मला सीतारमण पर टिकी हैं. आखिर वो 2020-21 के बजट में ऐसी क्या सौगात देती हैं जिससे खरीदारी और निवेश बढ़े. वित्त मंत्री अगर इस पर फोकस करती हैं तो यह भारत का दूसरा ड्रीम बजट साबित हो सकता है.
1997-98 के बजट को ड्रीम बजट कहा जाता है. इसे एचडी देवगौड़ा सरकार में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पेश किया था. इस बजट में इनकम टैक्स की ऊपरी सीमा 40 प्रतिशत से घटाकर 30 प्रतिशत कर दी गई. सरकारी कंपनियों के निजीकरण का रास्ता खोला गया. अचानक इनकम टैक्स कलेक्शन में तेजी आई और सैलरी वालों ने टैक्स से बचे पैसे को बाइक – कार, फ्लैट, प्लॉट खरीदने में लगाया. निवेश के दूसरे साधनों में पैसे लगे. इकॉनमी एक्टिव हुई. मैनुफैक्चरिंग बढ़ी. एक ऐसा चक्र बना जिसने विका दर को तेज रफ्तार दी.
तब भारत 1991 के आर्थिक संकट से बाहर निकला था. जीडीपी 5 फीसदी के आस-पास थी. आज हम उसी मोड़ पर हैं. विकास दर दस फीसदी को छूकर पुराने पांच फीसदी के आंकड़े पर चली गई है. बेरोजगारी 40 वर्षों के सर्वोच्च स्तर पर है. ऐसे में वित्त मंत्री के सामने ऐसा बजट पेश करने की चुनौती है जो न सिर्फ सुस्त रफ्तार पर एक्सलेटर लगाए बल्कि घाटा भी पाटे. जीएसटी और डायरेक्ट टैक्स दोनों से जितनी आमदनी सरकार ने सोची थी, उतनी हुई नहीं है. आमद और खर्च के बीच गैप से खजाने का घाटा जीडीपी के 3.3 प्रतिशत का टारगेट पार कर सकता है.
दूसरी ओर वित्त मंत्री इसे इग्नोर कर ऐसे आर्थिक सुधारों को हवा दे सकती हैं जिससे रोजगार पैदा हों, बैंकिंग सिस्टम में लोगों का भरोसा मजबूत हो और सैलरी वालों की बचत बढ़े. इसके संकेत निर्मला सीतारमण सितंबर में ही दे चुकी हैं. तब कॉरपोरेट टैक्स में भारी कटौती की गई. मौजूदा कंपनियों का टैक्स 30 परसेंट से घटाकर 22 परसेंट कर दिया गया. नई कंपनियों के लिए कॉरपोरेट टैक्स की दर 25 से घटाकर 15 परसेंट हो गई बशर्ते वो अगले दो साल में मैनुफैक्चरिंग शुरू कर दें. इसके नतीजे भी दिखाई दे रहे हैं. नवंबर – दिसंबर के आँकड़े बताते हैं कि सुस्ती थोड़ी दूर हुई है.
इकॉनमी की नब्ज पकड़ने वालों में ये आम सहमति है कि कॉरपोरेट टैक्स घटाने के बाद इनकम टैक्स स्लैब को भी उसी हिसाब से सेट किया जाना चाहिए. चिदंबरम के ड्रीम बजट के 22 साल बाद भी अपर लिमिट 30 परसेंट ही है. यही नहीं सरचार्ज जोड़ दें तो ये कहीं ज्यादा बैठता है. अगर सीतारमण टैक्सपेयर के लिए सितंबर जैसा कोई बड़ा एलान करती हैं तो अगले वित्त वर्ष में 6 से 6.5 परसेंट जीडीपी का लक्ष्य पाना आसान हो सकता है.