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कोरोना की कैद की आपबीती: ’20 दिन घर में रहे कैद, पूरे दिन मुट्ठीभर खाया खाना’

नई दिल्ली
चीन में कैसा था माहौल, फ्लाइट में कोरोना वायरस का डर, छावला में आईटीबीपी के क्वारंटाइन सेंटर में बिताए 14 दिन कैसे थे… ये न आप सोच सकते हैं न हम। इन पलों को लोगों ने कैसे झेला है जो अब अपने घर जा रहे हैं? साथ ही इस खौफ भरे माहौल में सेंटर पर जिनकी ड्यूटी लगी है उनका क्या है कहना छावला कैंप जाकर उनसे बात की पूनम गौड़ ने।

'20 दिन घर में रहे कैद, पूरे दिन मुट्ठीभर खाया खाना'
छावला के क्वारंटाइन सेंटर में 14 दिन का गुजारने के बाद चीन से आई जुआन ने बताया कि यहां आकर उसे शुरुआती दिनों में कुछ मुश्किलें हुईं। दोस्त नहीं थे, छोटी बच्ची डर रही थी, वो खेल नहीं पा रही थी, बार-बार रोती थी, लेकिन इसके बावजूद यह दिन चीन में बिताए दिनों से काफी बेहतर थे। जुआन ने बताया कि हाल ही में इटली से भी एक ग्रुप को लाया गया जिनमें कुछ कोरोना वायरस के पॉजिटिव केस थे। यहां खौफ का माहौल बन गया था। लोग अपनी खिड़कियां बंद करके रहने लगे थे लेकिन इटली के इस ग्रुप को जल्द ही यहां से शिफ्ट कर दिया गया, जिसके बाद माहौल फिर से अच्छा होने लगा। जुआन के पति अभिषेक ने बताया कि चीन में सुपर मार्केट खुले थे लेकिन डर इतना अधिक था कि हम घर में ही कैद हो कर रहे। घर में जो खाना था हम बस वही खाकर काम चला रहे थे। कुछ दिनों तक तो हमने पूरे दिन में बस मुट्ठी भर खाना खाया ताकि हम जिंदा रह सकें। हमने चीन में करीब 20 दिन इस तरह कांटे हैं। 8 साल की हमारी बेटी तान्या खेलने के लिए परेशान थी। रात में उठकर रोती थी। उसे स्कूल याद आ रहा था। यह चीजें हमें और अधिक परेशान कर रहीं थीं लेकिन आईटीपीबी कैंप में आने के बाद सब बदल गया।

'एंबेसी बनी फरिश्ता, फिर फ्लाइट में लगा काफी डर'
हैदराबाद के मनमीत सिंह बस छह दिनों के लिए परिवार के साथ चीन गए थे। इसी दौरान लॉकडाउन हो गया। खाने-पीने की कमी होने लगी। हमें लगा स्थितियां सुधर जाएंगी लेकिन इसके बाद स्थिति खराब होती चली गई। हम खुद को कोरोना वायरस से सुरक्षित रखना चाहते थे, इसलिए हमने लोगों से संपर्क करना बंद कर दिया। मनमीत के अनुसार, मेरे साथ मेरा पांच साल का बेटा और पत्नी भी थी। इस बीच हम लोगों की मदद के लिए बिजिंग की इंडियन एंबेसी फरिश्ता बनकर आई। एंबेसी की स्नेहा झा ने हमारी काफी मदद की। खौफ के माहौल में हमारी हिम्मत बढ़ाई जिससे हमें लगा यह हमारे परिवार से ही हैं। उनसे मिलने से पहले तक हमें कुछ साफ नहीं था कि क्या होने वाला है, हम कब और कैसे भारत पहुंच पाएंगे। फ्लाइट में भी काफी डर लगा। एयरपोर्ट पर हुआ टेस्ट काफी मुश्किल था लेकिन जब वह नेगेटिव आया तो जान में जान आई। यहां आकर कुछ परेशानियां तो हुईं लेकिन वह ऐसी नहीं थी जो बुरी लगी हों। जैसे मेरी बेटी और पत्नी को चाइनीज खाने की ही आदत है। उन्हें रोज इंडियन फूड खाने में परेशानी हो रही थी। इस कैंप में जो लोग अकेले आए थे उन्होंने तो काफी मस्ती भी की है लेकिन जो परिवार के साथ थे, वो कुछ परेशान थे क्योंकि बच्चों के लिए यह पल काफी मुश्किल थे।

एक महीने से घर नहीं गईं नर्सें
छावला में विदेश से लौटे लोगों को 14 दिनों के लिए रखा जा रहा है लेकिन ड्यूटी पर लगाई गई नर्सें पिछले एक महीने से भी अधिक समय से घर नहीं गई हैं। यहां रहने वाले मरीजों को कोई असुविधा न हो, इसका नर्स पूरा ख्याल रख रही हैं। सेंटर की नर्स सरीता ने बताया कि वह सेंटर में ही रह रही हैं। एक महीने से अधिक हो गया है। इससे पहले भी एक ग्रुप यहां आकर जा चुका है। सरिता के परिवार में उसका चार साल का बेटा भी है।सरिता कहती हैं कि उसे इतने लंबे समय तक कभी भी अपने से अलग नहीं रखा, इसलिए वह ज्यादा परेशान है। उसे फोन पर समझाती हैं कि बेटा मम्मा स्कूल आई हुईं हैं। यहां मम्मा होमवर्क नहीं कर पाई तो टीचर ने उन्हें घर नहीं आने की सजा सुनाई है। अब आप समय से होमवर्क करना। हंसतें हुए सरिता कहती हैं कि उनके लिए भी यह वायरस अनुभव है और काफी कुछ सीखने को मिला है। परिवार के लोग बहुत परेशान हैं। हालांकि अब उनका डर कुछ कम होने लगा है। नर्स लिजिना दास कहती हैं कि यहां आए लोगों को परेशानी न हो, इसका ख्याल रखते हैं। लोगों का व्यवहार शुरू में कुछ अग्रेसिव होता है लेकिन दो से तीन दिन में वे यहां घुल-मिल जाते हैं।

यूनिवर्सिटी में साथ थे, लेकिन दोस्ती कैंप में हुई
हरियाणा की पूर्णिमा, सुरभि और इलाहबाद की स्मिता चाइना की एक ही यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट्स हैं। वह एक दूसरे को जानते थे लेकिन कैंप में एक साथ 14 दिन बिताकर उनकी दोस्ती एकदम गहरी हो गई है। उन्होंने बताया कि चूंकि अब अपने देश में हैं इसलिए परिवार से मिलने का मन काफी अधिक होता है। यहां पर हमारे तीनों टेस्ट नेगेटिव आए हैं। शुरुआत में काफी मुश्किलें होती थीं। यहां पर टीटी, कैरम, चेस आदि खेलने के इंतजाम हैं। फिर हमने कुछ ऑनलाइन क्लासेज जॉइन कर लीं। जिसकी वजह से हमारा टाइमपास कुछ आसान हो गया।

बच्चों के लिए चीन में कई गुना कीमत पर भी नहीं मिला था दूध
चीन से आए वेमशी के लिए भी हालात काफी डरावने हो गए थे। अपने 1 साल के बच्चे मीनू के लिए दूध और खाने का इंतजाम सबसे मुश्किल था। चीन में खाना लेने भी बाहर जाना सुरक्षित नहीं था। ऐसे में मिल्क फूड के रेट कई गुना चुकाने के बाद भी इंतजाम नहीं हो पा रहे थे। वह दिन काफी मुश्किल भरे थे। इस बीच इंडियन एंबेंसी ने हमारा साथ दिया और हमें कुछ उम्मीद दिखी। हम चीन से फ्लाइट लेकर जब देश लौट रहे थे, तब हमें लग रहा था कि हम जिंदगी के करीब आ रहे हैं। 27 फरवरी को हम यहां पहुंचे। यहां आने के बाद क्वारंटाइन पीरियड में हमें ज्यादा मुश्किल नहीं हुई। यहां हमें खाना मिल रहा था, बेबी फूड भी मिल रहा था।हां, हैदराबाद जाने की जल्दी थी क्योंकि वहां पूरा परिवार परेशान था लेकिन वह दिन भी यहां कट गए क्योंकि उम्मीद थी और बेहतरीन सुविधाएं। स्टाफ काफी अच्छा था, मेडिकल फसिलिटी हर समय दी जा रही थी। एयरपोर्ट पर जब हमारे टेस्ट नेगेटिव आए जो हमें काफी राहत मिली। इसके बाद कैंप में आने के बाद टेस्ट हुए वह भी नेगेटिव रहे। अब 14 दिन बाद की हमारी रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद ऐसा लग रहा है कि 14 साल का वनवास खत्म हुआ है।

 

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