वाराणसी
रंगभरी एकादशी के पावन अवसर पर गुरुवार को श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के महंत आवास के आंगन में संगीत और संस्कार के रंग बिखरे। बाबा रजत पालकी पर मंदिर के लिए निकले तो अबीर गुलाल से जमीन से लेकर आसमान तक अजब भक्ति का माहौल छा गया। विशुद्ध देशी शैली में शिव की होली के दृश्यों को संगीत के संस्कारों से जीवंत किया गया।
इस दौरान भक्तों के बीच नाचने की होड़ सी मची रही। सब एक दूसरे के ऊपर गिरते-संभलते लगातार नाचते रहे। कलाकारों ने गायन और वादन के माध्यम से बाबा के प्रति अपनी श्रद्धा निवेदित की। गायन के इस सत्र के बाद शिव-पार्वती और सखियों के स्वरूप में कलाकारों ने भक्तों के साथ भभूत से होली खेली। पालकी उठने पर गुलाल उड़ने से पहले कई बोरे भभूत नृतमय होली के दौरान उड़ा दिए गए। आलम यह था कि भक्तों, कलाकारों से लेकर महंत आवास का आंगन, सीढ़ियां और दीवारें तक सफेद हो गई थीं।
रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ के पूजन का क्रम ब्रह्म मुहूर्त में महंत आवास पर आरंभ हुआ। वैदिक ब्राह्मणों ने बाबा एवं माता पार्वती की चल प्रतिमाओं को पंचगव्य तथा पंचामृत से स्नान कराया। मंत्रोच्चार के बीच स्नान की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद चल रजत प्रतिमाओं का दुग्धाभिषेक किया गया। भोर में पांच से आठ बजे तक 11 वैदिक ब्रह्मणों द्वारा षोडशोपचार पूजन किया गया। इसके बाद बाबा को फलाहार का भोग लगाकर महाआरती की गई।
राजसी ठाट में श्रृंगार के बाद झांकी के दर्शन जन सामान्य के लिए खोल दिए गए। सायं सवा पांच बजे बाबा की रजत पालकी विश्वनाथ मंदिर के लिए रवाना हुई। मध्याह्न 12 भोग आरती के दौरान दर्शन का क्रम रुका रहा। काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डा. कुलपति तिवारी ने बाबा की मध्याह्न भोग आरती की। महंत आवास पर दोपहर 12 से सायं साढ़े चार बजे तक शिव की संगीत से अर्चना के लिए शिवांजलि का आयोजन किया गया।