रायपुर
एशिया का सबसे बड़ा सीताफल फॉर्म दुर्ग जिले की धमधा ब्लॉक के धौराभाठा गांव में है। लगभग 500 एकड़ के इस फॉर्म में 20 प्रकार के फलों के पेड़ लगे है। इसमें 180 एकड़ जमीन में केवल सीताफल फैला है। सीताफल के पेड़ की आयु 90 साल होती है। इस प्रकार यह 3 पीढि?ों के लिए निवेश कर भूल जाने की तरह है जिसका हर सीजन में आप लाभ ले सकते हैं। इसके मार्केट के लिए कोई तनाव ही नहीं। भुवनेश्वर में हर दिन इसकी 10 टन खपत होती है। फॉर्म के मैनेजिंग डायरेक्टर श्री अनिल शर्मा ने बताया कि सीजन में हर दिन यहां से 10 टन सीताफल उपजाते हैं। सीताफल पकने पर इसका पल्प निकाल लेते हैं, जो आइसक्रीम आदि बनाने में काम आती है। वे बालानगर प्रजाति के सीताफल उपजाते हैं जो सीताफल की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति माना जाता है।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देश पर उद्योग विभाग ने सितंबर माह में क्रेता विक्रेता सम्मेलन का आयोजन किया था, जिसके पश्चात 16 देशों के प्रतिनिधि मंडल ने इस फॉर्म का भ्रमण किया था। अब इन देशों से करार अंतिम चरण में है। इसमें सऊदी अरब से लेकर सोमालिया तक की कंपनियां शामिल हैं जिनसे निर्यात के संबंध में बात की गई है।
खास बात है जैविक खेती
इन्होंने 150 गिर प्रजाति की गाय पाली हैं। सबसे पहले 15 गायों के लिए उन्होंने पशुधन विकास विभाग से 6 लाख रुपये का अनुदान लिया, फिर तो रास्ता खुल गया और अब इन गायों की घी दिल्ली में बेच रहे हैं। यह ऐसा गौठान है जहां एक भी मक्खी नहीं। गिर गायों के मसाज के लिए मशीन हैं। इनके चारे के लिए ही 40 एकड़ में गन्ना, मक्का और नैपियर घास लगाई गई है। फॉर्म के मैनेजर श्री राकेश धनगर ने बताया कि 1 गिर गाय से निकले गोबर से 10 एकड़ में जैविक खेती की जा सकती है। यहां आर्गेनिक खाद, कीटनाशक बनाने के लिए यूनिट तैयार की गई है। इससे इजरायल की पद्धति से आर्गेनिक खाद 500 एकड़ तक फैले खेत में पहुंचाया जाता है। यह पूरी तरह से आॅटोमेटेड है अर्थात आप पानी और खाद की मात्रा सेट कर चले जाइये, 14 दिनों तक इसे देखने की जरूरत नहीं। यहां की जैविक खेती देश की जानी मानी संस्था अपेडा से मान्यता प्राप्त है और इसे आईएसओ सर्टिफिकेट मिला है जो इसके उत्पादों को विश्वसनीयता प्रदान करती है। विभिन्न मदों में लगभग 6 करोड़ की लागत आई। इसमें 93 लाख रुपये की सब्सिडी शासन की ओर से प्राप्त हुई।
वाटर हार्वेस्टिंग का शानदार मॉडल
फॉर्म में पानी की सतत सप्लाई रहे, इसके लिए लगभग 10 एकड़ में 2 तालाब बनाये गए हैं। इसके लिए शासन की ओर से 24 लाख रुपये की सब्सिडी मिली। यह वाटर हार्वेस्टिंग का भी शानदार मॉडल साबित हुआ और नजदीक के 10 गांवों में इससे जलस्तर काफी बढ़ गया। इसके पास की अधिकतर जमीन भाठा जमीन है और यह नखलिस्तान की तरह लगता है।
हर दिन 8 टन ड्रैगन फ्रुट का उत्पादन
ड्रैगन फ्रूट और स्वीट लेमन जैसे एन्टी आॅक्सीडेंट्स से भरपूर फलों के ढेरों पेड़ हैं। सीजन में हर दिन लगभग 8 टन उत्पादन होता है जो दिल्ली, हैदराबाद जैसे शहरों में जाता है। इनके 35 एकड़ जमीन में थाई प्रजाति के अमरूद लगे हैं इसकी विशेषता यह है कि इसमें शुगर कम है और काफी दिनों तक टिक जाता है। महानगरों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों की बढ़ती आबादी को देखते हुए पूरा माल खप जाता है। राकेश ने बताया कि हमारे 5 वेंडर मुम्बई के सीएसटी में हैं जिनसे तुरंत माल खप जाता है। सीजन में हर दिन 10 टन अमरूद का उत्पादन होता है और पूरे सीजन में लगभग 500 टन। खास तकनीक से इन्हें सहेजा जाता है। इसकी गुणवत्ता जांच यहां भी होती है और नागपुर स्थित लैब में भी। खजूर के लगभग 500 पेड़ हैं जिनसे सीजन में 10 टन खजूर उत्पादित होता है। इस साल यहाँ 60 एकड़ में 550 टन एप्पल बेर का उत्पादन किया गया है।