नई दिल्ली
मुख्यमंत्री बनने के बाद पहली बार दिल्ली आए शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर केंद्र सरकार का समर्थन करते हुए कहा कि इस कानून से किसी को डरने की जरूरत नहीं है. उद्धव का यह बयान महाराष्ट्र की राजनीति में उबाल ला सकता है.
उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस के समर्थन से मिली-जुली सरकार चला रहे हैं. एक ओर जहां एनसीपी और कांग्रेस नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे हैं और खुलकर विरोध भी जता चुके हैं तो दूसरी ओर शिवसेना इसके समर्थन में है. ऐसे में दिखता है कि महाराष्ट्र में साझा सरकार में कहीं न कहीं आपसी मतभेद बना हुआ है.
3 महीने पहले ही बनी साझा सरकार
इस बयान के बाद सवाल खड़ा होता है कि बतौर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे अगर अपने सहयोगी दलों के खिलाफ जाकर बयान देते रहेंगे तो वह किस तरह से गठबंधन का धर्म निभाएंगे. हालांकि 2 दिन पहले छत्रपति शिवाजी की जयंती के अवसर पर उन्होंने कहा था कि हमने साथ आने में काफी समय लगा दिए, लेकिन अब जब साथ आ गए हैं तो मिलकर सभी अच्छी चीजें करेंगे.
याद दिला दें कि पिछले साल लंबे संघर्ष और कड़ी मशक्कत के बाद महा विकास अघाड़ी की सरकार 28 नवंबर 2019 को अस्तित्व में आई जरुर लेकिन उद्धव ठाकरे की सरकार के शपथ लेने से पहले और उसके बाद कई मुद्दों में शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के बीच मतभेद की स्थिति बनी रही.
इन मुद्दों पर दिख रहा टकराव
महाराष्ट्र में सरकार बने अभी 3 महीने भी पूरे नहीं हुए हैं, लेकिन तीनों सहयोगी दलों में कई मुद्दों में आपसी टकराव दिख रहा है. आइए, नजर डालते हैं उन मुद्दों पर जहां इनके बीच टकराव की स्थिति बनी हुई है.
1. नागरिकता संशोधन कानून
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का खुलकर सामने आना और यह कहना कि नागरिकता संशोधन कानून से किसी को डरने की जरूरत नहीं है और सीएए पर मुसलमानों को डराया जा रहा है, यह दिखाता है कि शिवसेना और दोनों अन्य सहयोगी दलों के बीच कहीं न कहीं टकराव की स्थिति बनती जा रही है.
नागरिकता संशोधन कानून पर उद्धव ठाकरे ने मोदी सरकार का समर्थन किया तो कांग्रेस और एनसीपी राज्य में सीएए लागू करने का विरोध कर रहे हैं. जबकि शिवसेना का कहना है कि इस कानून से किसी को कोई परेशानी नहीं होगी.
2. राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर)
सीएए के साथ ही राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) पर भी शिवसेना अपने सहयोगी दलों कांग्रेस और एनसीपी से अलग राय रखती है. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने साफ कर दिया कि महाराष्ट्र में एनपीआर की प्रक्रिया को उनकी सरकार आगे बढ़ाएगी. यह बयान इसलिए मायने रखता है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के बाद उन्होंने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मुलाकात की.
कांग्रेस और एनसीपी एनपीआर का विरोध कर रही है. एनसीपी एनपीआर में आपत्तिजनक सवाल हटाना चाहती है जबकि शिवसेना की नजर में यह गलत नहीं है. कांग्रेस-एनसीपी के एतराज पर मुख्यमंत्री उद्धव का कहना है कि हर 10 साल में जनगणना होती है और एनपीआर इसका हिस्सा है. एनपीआर किसी को घर से बाहर निकालने के लिए नहीं है. यदि एनपीआर में खतरनाक पहलू सामने आते हैं तब वे इसे देखेंगे.
3. सावरकर पर अलग-अलग विचार
विनायक दामोदर सावरकर को लेकर भी सहयोगी दलों में मतभेद की स्थिति बनी हुई है. सरकार के गठन से पहले भी इस मुद्दे पर एक राय नहीं बन सकी थी और विवादित मुद्दों से दूर रहने पर रजामंदी बनी थी. लेकिन सावरकर पर कांग्रेस के नेताओं की ओर से बार-बार टिप्पणी किए जाने से शिवसेना को असहज हो जाती है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी कई बार सावरकर पर टिप्पणी कर चुके हैं. यह ऐसा मामला है जिस पर दोनों पक्षों की ओर से लगातार हमले हो ही रहे हैं.
4. भीमा कोरेगांव हिंसा पर विरोध
भीमा कोरेगांव हिंसा मामले की जांच एनआईए से कराने की अनुमति महाराष्ट्र सरकार ने दे दी थी, लेकिन बाद में एनसीपी नेता शरद पवार ने राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख से इस मामले की जांच एसआईटी से कराने की सलाह देकर राज्य सरकार की किरकिरी करा दी थी.
5. एल्गार परिषद की जांच का मामला
एल्गार परिषद की जांच को लेकर सहयोगी दलों में मतभेद है. 31 दिसंबर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद की एक बैठक हुई थी. ऐसा आरोप है कि इस बैठक में भड़काऊ भाषण दिए गए, जिसके बाद भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़क गई थी और दंगों जैसी स्थिति बन आई थी.
उद्धव ठाकरे कहते हैं कि भीमा-कोरेगांव का मामला दलितों से जुड़ा है और इसे वह केंद्र को नहीं सौंपेंगे, लेकिन उन्होंने एल्गार परिषद की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) से कराने की बात कही थी. हालांकि शरद पवार इससे खुश नहीं हुए.