देखी सुनी

ईश्वर के हाथ में है कि जीवन कब त्यागना है, किंतु मानवीयता का त्याग मैं नहीं कर सकती

शीला मिश्रा, बावडिय़ां कला,भोपाल

मासूम का करुण क्रंदन सुन जाग उठी ममता, जान की परवाह किए बिना रोते-बिलखते मासूम को सीने से लगा लिया

बच्चे की रोने की आवाज सुनकर नेहा तेजी से बालकनी में आई। वहां देखती है कि अशोक ब्लॉक के सामने एक गाड़ी खड़ी है और उसके नजदीक ही दो पुलिसकर्मी खड़े होकर प्रथम तल की उस बालकनी की ओर देख रहे हैं, जहां सचिन उपाध्याय का छोटा बेटा विवान ग्रिल को पकड़े जोर-जोर से रो रहा है। जिज्ञासु व आशंकित नेहा ने आसपास के फ्लैट की बालकनी की ओर देखा पर कहीं कोई दिखाई नहीं दिया।

चिंतातुर हो उसने अशोक ब्लॉक में रहने वाली अपनी मित्र सुनयना को फोन लगाया। सुनयना ने जो जानकारी दी उससे तो नेहा के होश ही उड़ गए। सुनयना ने बताया कि कुछ दिन से उपाध्याय जी की तबीयत ठीक नहीं थी। उन्होंने कोविड-19 का टेस्ट करवाया तो पॉजिटिव आया, तब उनको परसों ही अस्पताल में भर्ती किया गया। उनकी पत्नी और दोनों बच्चों के टेस्ट भी किए गए, जिसमें उनकी पत्नी व बड़ा बेटा रोहन भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए।

आज डॉक्टर की टीम आकर उन दोनों को भी अस्पताल ले गई, चूंकि चार वर्षीय विवान की टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई, इसलिए वह घर पर अकेला रह गया। जब से उसकी मम्मी व बड़े भाई को ले जाया गया है, तब से ही वह चीख-चीखकर रोए जा रहा है। अब बताओ, ऐसे में कौन उसे संभाले, इस समय तो सभी को अपनी जान बचानी है ना।

किंतु उसकी रिपोर्ट तो निगेटिव आई है। नेहा ने सहजता के साथ कहा, तो क्या, उसके घर के सभी सदस्य तो कोरोना पीडि़त निकले ना। अब विवान का क्या होगा, यह डॉक्टर जाने या पुलिस। इतना कहकर सुनयना ने फोन काट दिया।

विवान का करुण क्रंदन सोसाइटी के पूरे परिसर में गूंज रहा था और सभी रहवासी दरवाजा बंद किए अपने-अपने घरों में कैद थे। नेहा की आत्मा कराह उठी। एक चार साल का निरीह बालक, असहाय सा दहाड़े मार-मार कर रो रहा है और सभी दरवाजे-खिड़की के साथ-साथ अपने कानों को भी बंद कर घर में दुबके हुए हैं। नेहा स्वयं को नहीं रोक पाई। इसी शहर में रहने वाले अपने नातियों के लिए फ्रिज में लाकर रखी गई चॉकलेट में से उसने कुछ चॉकलेट उठाई और ताला बंद कर अशोक ब्लॉक की तरफ चल पड़ी।

दूर से ही उसे आता देख एक पुलिसकर्मी ने तेज आवाज में कहा आंटी जी अपने घर जाइए, किंतु नेहा बिना सुने आगे बढ़ती गई तो पुलिसकर्मी उसकी तरफ आते हुए बोला, यहां आने की मनाही है, आप वापस लौट जाइए। कैसे लौट जाऊं मैं वापिस, एक मासूम का रुदन आप सुन रहे हैं न। इस समय उसे स्नेह की, प्यार की आवश्यकता है। नेहा ने बहुत अधिकार के साथ कहा। आंटीजी, आप शायद वास्तविकता नहीं जानती हैं। इनके घर के तीन सदस्य कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। इस बच्चे को संभालने के लिए हमने इसके दादा-दादी को बुलवाया है।

वह मासूम, पुलिसवर्दी में हमें देख घबरा रहा है, इसलिए जब तक वे आएं, हम यहां खड़े होकर उसे बहलाने की कोशिश कर रहे हैं। पुलिसकर्मी ने समझाया। आप अपना काम कर रहे हैं, मुझे भी अपना काम करने दीजिए। इस मासूम की करुण पुकार ने मेरा सीना चीर कर रख दिया है। कृपया आप मुझे वहां जाने दीजिए। नेहा ने हाथ जोड़ते हुए कहा। आंटी जी, आप हमारी बात मान लीजिए नहीं तो हमें सख्ती करनी पड़ेगी। वैसे भी हम आपकी उम्र का लिहाज कर रहे हैं। दूसरे पुलिसकर्मी ने कहा।

देखिए, आप जैसी चाहे वैसी सख्ती कर लीजिएगा, किंतु बाद में, आपने मेरी उम्र का जिक्रकिया है, तो सच यह है कि मैंने अपनी जिंदगी जी ली है। यह तो ईश्वर के हाथ में हैं कि जीवन कब त्यागना है, किंतु मानवीयता का त्याग मैं नहीं कर सकती, हर्गिज भी नहीं। कहीं रोते-रोते इस बच्चे की सांंस उखड़ गई तो, इतना कहकर पुलिस की परवाह किए बिना वह शीघ्रता से विवान के पास पहुंच गई और रोते-बिलखते विवान को उसने अपने सीने में भींच लिया।

विवान नेहा को पहचानता था। उनके स्नेह सिक्त आलिंगन से धीरे-धीरे उसका रुदन थम गया और वह हिचकियां लेते हुए नेहा से चिपका रहा। थोड़ी देर बाद नेहा की गोदी में चॉकलेट खाता हुआ विवान दूर से आते हुए अपने दादा-दादी को देख कर मुस्कुरा रहा था। अचानक रुदन का स्वर थमने से जिज्ञासु परिसरवासी अपनी-अपनी बालकनी में निकल आए। अश्रुपूरित नेत्रों से जहां वे नेहा की गोदी में मुस्कुराते विवान को तक रहे थे, वहीं दोनों पुलिसकर्मी मानवीयता की अद्भुत मिसाल देख अचंभित थे।

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