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अपने गुरु को याद कर भावुक हुए सीएम, बोले-वे चाहते थे मानसरोवर मंदिर का हो जीर्णोद्धार

 गोरखपुर 
सैकड़ों साल पुराने गोरखपुर के मानसरोवर मंदिर में मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पहुंचे मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार से काफी खुश नज़र आए। इस मौके पर अपने गुरु ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ को याद करते हुए उन्होंने कहा कि वह जब कभी यहां आते थे तो मंदिर की जीर्ण शीर्ण अवस्था को देखकर दु:खी होते थे। कहते थे कि इसका जीर्णोद्धार होना चाहिए। आज उनकी आत्मा को इससे शांति मिली होगी। 

दरअसल, विजयदशमी के दिन गोरक्षपीठाधीश्वर की अगुवाई में गोरखनाथ मंदिर से भव्य शोभायात्रा निकलने की परम्परा है। यह शोभा यात्रा मानसरोवर मंदिर भी आती है। गुरुवार को मंदिर पहुंंचने पर मुख्‍यमंत्री ने सबसे पहले रामदरबार, राधा कृष्‍ण मंदिर और शिव परिवार का दर्शन किया और मानसरोवर मंदिर में विधिवत पूजा अर्चना की। 

समारोह में मौजूद लोगों को सम्‍बोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष में एक बार ही सही वह और उनके गुरुदेव यहां आते तो मंदिर की जीर्ण शीर्ण हालत नज़र आती थी। लगता था कि यहां कभी भी कोई दुर्घटना घट सकती है। मूर्तियां भी पुरानी पड़कर खंडित हो चुकी थीं। ऐसे में करीब आठ-दस वर्ष पूर्व उन्होंने मंदिर के सरोवर के जीर्णोद्धार की कार्यवाही शुरू की थी। सरोवर का जीणोद्धार हो भी गया लेकिन सुंदरीकरण का काम नहीं हो सका था।

अब उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से पर्यटन विभाग ने यह काम अपने हाथ में लिया। देखते ही देखते चार दानदाता जवाहर कसौधन, अरुण अग्रवाल लाला, ओम प्रकाश कर्मचंदानी और विष्णु अजित सरिया भी आगे आ गए। सबके सहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार और सुंदरीकरण का काम पूरा हुआ है। सैकड़ों वर्षों से जो काम अधूरा था, वह पूरा हुआ है। यहां की भावनाओं के अनुरूप मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा हुई है। मुख्यमंत्री ने चारों दानदाताओं के प्रति आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि मानसरोवर का पवित्र मंदिर सैकड़ों वर्षों से गोरखपुर के लोगों का प्रमुख मंदिर रहा है। लेकिन लम्बे समय तक कोई नहीं दिए जाने के कारण इसकी हालत जीर्ण शीर्ण हो गई थी।  

प्लास्टिक का इस्तेमाल न करने का किया आह्वान 
मुख्यमंत्री ने लोगों से प्लास्टिक का इस्तेमाल न करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि सरकार ने प्लास्टिक को प्रतिबंधित किया है। इसका उद्देश्य यह है कि समाज को इससे होने वाले नुकसान से बचाया जा सके। लेकिन आज भी बहुत से लोग इसका उपयोग कर रहे हैं। यहां तक कि मंदिरों में भी प्लास्टिक के पन्ने में सामान लेकर जाते हैं। प्रसाद चढ़ाने के बाद प्लास्टिक फेंक देते हैं। इससे परिसर गंदा होता है। प्लास्टिक नाली में जाता है तो नाली चोक हो जाती है।  कूड़े में फेंका गया प्लास्टिक में खाकर गायों की मौत हो जाती है। इतने सारे दुष्प्रभावों के पाप से बचना है तो प्लास्टिक का इस्तेमाल रोकना होगा। मंदिर आस्था का प्रतीक है। उसी श्रद्धा भाव से वहां जाना चाहिए। ध्यान देना चाहिए कि हमारी वजह से वहां कोई गंदगी न हो। 

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